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दैव्या॑ होताराऽ उ॒र्ध्वम॑ध्व॒रं नो॒ऽग्नेर्जिह्वाम॒भि गृ॑णीतम्। कृ॒णु॒तं नः॒ स्वि᳖ष्टिम् ॥१८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दैव्या॑। हो॒ता॒रा॒। ऊ॒र्ध्वम्। अ॒ध्व॒रम्। नः॒। अ॒ग्नेः। जि॒ह्वाम्। अ॒भि। गृ॒णी॒त॒म् कृ॒णु॒तम्। नः॒ स्वि᳖ष्टि॒मिति॒ सुऽइ॑ष्टिम् ॥१८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:18


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (दैव्या) विद्वानो में प्रसिद्ध हुए दो विद्वान् (होतारा) सुख के देनेवाले (नः) हमारे (ऊर्ध्वम्) उन्नति को प्राप्त (अध्वरम्) नहीं बिगाड़ने योग्य व्यवहार की (अभि, गृणीतम्) सब ओर से प्रशंसा करें वे दोनों (नः) हमारी (स्विष्टिम्) सुन्दर यज्ञ के निमित्त (अग्नेः) अग्नि की (जिह्वाम्) ज्वाला को (कृणुतम्) सिद्ध करें ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - जो जिज्ञासु और अध्यापक लोग अग्नि की विद्या को जानें, तो विश्व की उन्नति करें ॥१८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(दैव्या) देवेषु विद्वत्सु भवौ विद्वांसौ (होतारा) सुखस्य दातारौ (ऊर्ध्वम्) प्राप्तोन्नतिम् (अध्वरम्) अहिंसनीयं व्यवहारम् (नः) अस्माकम् (अग्नेः) पावकस्य (जिह्वाम्) ज्वालाम् (अभि) (गृणीतम्) प्रशंसेताम् (कृणुतम्) कुरुतम् (नः) (स्विष्टिम्) शोभना इष्टिर्यस्यास्ताम् ॥१८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यो दैव्या होतारा न ऊर्ध्वमध्वरमभिगृणीतं तौ नः स्विष्टिमग्नेर्जिह्वां कृणुतम् ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - यदि जिज्ञास्वध्यापकावग्निविद्यां जानीयातां तर्हि विश्वस्योन्नतिं कुर्याताम् ॥१८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे जिज्ञासू लोक व अध्यापक अग्निविद्या जाणतात ते विश्वाची उन्नती करतात.