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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
सन्तान कैसे उत्तम हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अध्यापक वा अध्यापिके ! तू (इह) इस गृहाश्रम में अपने तुल्य गुणवाले पतियों वा (उशतीः) कामनायुक्त (देवानाम्) विद्वानों की (पत्नीः) स्त्रियों को और (सोमपीतये) उत्तम ओषधियों के रस को पीने के लिये (त्वष्टारम्) तेजस्वी पुरुष को (उप, आ, वह) अच्छे प्रकार समीप प्राप्त कर वा करें ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य कन्याओं को अच्छी शिक्षा दे, विदुषी बना और स्वयंवर से प्रिय पतियों को प्राप्त करा के प्रेम से सन्तानों को उत्पन्न करावें तो वे सन्तान अत्यन्त प्रशंसित होते हैं ॥२० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
कथमपत्यानि प्रशस्तानि स्युरित्याह ॥
अन्वय:
(अग्ने) अध्यापकाऽध्यापिके वा (पत्नीः) (इह) (आ) (वह) प्रापय (देवानाम्) विदुषाम् (उशतीः) कामयमानाः (उप) (त्वष्टारम्) देदीप्यमानम् (सोमपीतये) सोमस्य पानाय ॥२० ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने त्वमिह स्वसदृशान् पतीरुशतीर्देवानां पत्नीः सोमपीतये त्वष्टारमुपा वह ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - यदि मनुष्याः कन्याः सुशिक्ष्य विदुषीः कृत्वा स्वयंवृतान् हृद्यान् पतीन् प्रापय्य प्रेम्णा सन्तानानुत्पादयेयुस्तर्हि तान्यपत्यान्यतीव प्रशंसितानि भवन्ति ॥२० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे मुलींना चांगले शिक्षण देऊन त्यांना विदुषी बनवितात व स्वयंवर पद्धतीने त्यांना प्रिय असलेल्या पतीशी विवाह करून देतात त्यांची संताने उत्तम होतात व त्यांची प्रशंसा होते.