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म॒हाँ२ ॥ऽइन्द्रो॒ वज्र॑हस्तः षोड॒शी शर्म॑ यच्छतु। हन्तु॑ पा॒प्मानं॒ यो᳕ऽस्मान् द्वेष्टि॑। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि महे॒न्द्राय॑ त्वै॒ष ते॒ योनि॑र्महे॒न्द्राय॑ त्वा ॥१० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒हान्। इन्द्रः॑। वज्र॑ह॒स्त इति॒ वज्र॑ऽहस्तः। षो॒ड॒शी। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒। हन्तु॑। पा॒प्मान॑म्। यः। अ॒स्मान्। द्वेष्टि॑। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। म॒हे॒न्द्रायेति॑ महाऽइ॒न्द्राय॑। त्वा॒। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। म॒हे॒न्द्रायेति॑ महाऽइ॒न्द्राय॑। त्वा॒ ॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:26» मन्त्र:10


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजा के सत्कार इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (वज्रहस्तः) जिस के हाथों में वज्र (षोडशी) सोलह कला युक्त (महान्) बड़ा (इन्द्रः) और परम ऐश्वर्यवान् राजा (शर्म) जिस में दुःख विनाश को प्राप्त होते हैं, उस घर को (यच्छतु) देवे (यः) जो (अस्मान्) हम लोगों को (द्वेष्टि) वैरभाव से चाहता उस (पाप्मानम्) खोटे कर्म करनेवाले को (हन्तु) मारे। जो आप (महेन्द्राय) बड़े-बड़े गुणों से युक्त के लिये (उपयामगृहीतः) प्राप्त हुए नियमों से ग्रहण किये हुए (असि) हैं, उन (त्वा) आप को तथा जिन (ते) आप का (एषः) यह (महेन्द्राय) उत्तम गुणवाले के लिये (योनिः) निमित्त है, उन (त्वा) आप का भी हम लोग सत्कार करें ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - हे प्रजाजनो ! जो तुम्हारे लिये सुख देवे, दुष्टों को मारे और महान् ऐश्वर्य को बढ़ावे, वह तुम लोगों को सदा सत्कार करने योग्य है। १० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजसत्कारमाह ॥

अन्वय:

(महान्) बृहत्तमः (इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्तो राजा (वज्रहस्तः) वज्रो हस्तयोर्यस्य सः (षोडशी) षोडशकलायुक्तः (शर्म) शृण्वन्ति दुःखानि यस्मिन् तद्गृहम्। शर्मेति गृहनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.१४) (यच्छतु) ददातु (हन्तु) (पाप्मानम्) दुष्टकर्मकारिणम् (यः) (अस्मान्) (द्वेष्टि) अप्रीतयति (उपयामगृहीतः) (असि) (महेन्द्राय) महद्गुणविशिष्टाय (त्वा) त्वाम् (एषः) (ते) (योनिः) निमित्तम् (महेन्द्राय) (त्वा) त्वाम् ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! वज्रहस्तः षोडशी महानिन्द्रः शर्म यच्छतु योऽस्मान् द्वेष्टि तं पाप्मानं हन्तु यस्त्वं महेन्द्रायोपयामगृहीतोऽसि तं त्वा यस्यैष ते महेन्द्राय योनिरस्ति तं त्वा च वयं सत्कुर्याम ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - हे प्रजाजन ! यो युष्मभ्यं सुखं दद्याद् दुष्टान् हन्यान्महैश्वर्यं वर्द्धयेत् स युष्माभिः सदा सत्कर्त्तव्यः ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे प्रजाजनांनो ! जो तुम्हाला सुख देतो, दुष्टांना मारतो व खूप ऐश्वर्य वाढवितो त्याचा तुम्ही सन्मान करा.