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ये वा॒जिनं॑ परि॒पश्य॑न्ति प॒क्वं यऽई॑मा॒हुः सु॑र॒भिर्निर्ह॒रेति॑। ये चार्व॑तो मासभि॒क्षामु॒पास॑तऽउ॒तो तेषा॑म॒भिगू॑र्त्तिर्नऽइन्वतु ॥३५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। वा॒जिन॑म्। प॒रि॒पश्य॒न्तीति॑ परि॒ऽपश्य॑न्ति। प॒क्वम्। ये। ई॒म्। आ॒हुः। सु॒र॒भिः। निः। ह॒र॒। इति॑। ये। च॒। अर्व॑तः। मा॒स॒ऽभि॒क्षामिति॑ मांꣳसऽभिक्षाम्। उ॒पास॑त॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते। उ॒तो इत्यु॒तो। तेषा॑म्। अ॒भिगू॑र्त्ति॒रित्य॒भिऽगू॑र्त्तिः। नः॒। इ॒न्व॒तु॒ ॥३५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:35


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन रोकने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (अर्वतः) घोड़े के (मांसभिक्षाम्) मांस के माँगने की (उपासते) उपासना करते (च) और (ये) जो घोड़ा को (ईम्) पाया हुआ मारने योग्य (आहुः) कहते हैं, उन को (निः, हर) निरन्तर हरो, दूर पहुँचाओ (ये) जो (वाजिनम्) वेगवान् घोड़ों को (पक्वम्) पक्का सिखा के (परिपश्यन्ति) सब ओर से देखते हैं (उतो) और (तेषाम्) उन का (सुरभिः) अच्छा सुगन्ध और (अभिगूर्त्तिः) सब ओर से उद्यम (नः) हम लोगों को (इन्वतु) प्राप्त हो, उन के अच्छे काम हमको प्राप्त हों, (इति) इस प्रकार दूर पहुँचाओ ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - जो घोड़े आदि उत्तम पशुओं का मांस खाना चाहें, वे राजा आदि श्रेष्ठ पुरुषों को रोकने चाहियें, जिस से मनुष्यों का उद्यम सिद्ध हो ॥३५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः के निरोद्धव्या इत्याह ॥

अन्वय:

(ये) (वाजिनम्) वेगवन्तमश्वम् (परिपश्यन्ति) सर्वोऽन्वीक्षन्ते (पक्वम्) परिपक्वस्वभावम् (ये) (ईम्) प्राप्तम् (आहुः) (सुरभिः) सुगन्धः (निः) नितराम् (हर) निस्सारय (इति) (ये) (च) (अर्वतः) अश्वस्य (मांसभिक्षाम्) मांसयाचनाम् (उपासते) (उतो) अपि (तेषाम्) (अभिगूर्त्तिः) अभ्युद्यमः (नः) अस्मान् (इन्वतु) प्राप्नोतु ॥३५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - येऽर्वतो मांसभिक्षामुपासते च येऽश्वमीं हन्तव्याहुस्तान्निर्हर दूरे प्रक्षिप। ये वाजिनं पक्वं परिपश्यन्ति उतो अपि तेषां सुरभिरभिगूत्तिर्न इन्वत्विति ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - येऽश्वादिश्रेष्ठानां पशूनां मांसमत्तुमिच्छेयुस्ते राजादिभिः श्रेष्ठैर्निरोद्धव्या यतो मनुष्याणामुद्यमसिद्धिः स्यात्॥३५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - घोडे इत्यादी उत्तम पशूंचे मास खाणाऱ्यांना, राजा व श्रेष्ठ पुरुष वगैरेंना रोखावे अन्यथा माणसांचे उद्योग व्यवस्थितपणे चालू शकणार नाहीत.