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दे॒वानां॑ भ॒द्रा सु॑म॒तिर्ऋ॑जूय॒तां दे॒वाना॑ रा॒तिर॒भि नो॒ निव॑र्त्तताम्। दे॒वाना॑ स॒ख्यमुप॑सेदिमा व॒यं दे॒वा न॒ऽआयुः॒ प्रति॑रन्तु जी॒वसे॑ ॥१५ ॥

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पद पाठ

दे॒वाना॑म्। भ॒द्रा। सु॒म॒तिरिति॑ सुऽम॒तिः। ऋ॒जूय॒ताम्। ऋ॒जु॒य॒तामित्यृ॑जुऽय॒ताम्। दे॒वाना॑म्। रा॒तिः। अ॒भि। नः॒। नि। व॒र्त्त॒ता॒म्। दे॒वाना॑म्। स॒ख्यम्। उप॑। से॒दि॒म॒। आ। व॒यम्। दे॒वाः। नः॒। आयुः॑। प्र। ति॒र॒न्तु॒। जी॒वसे॑ ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (देवानाम्) विद्वानों की (भद्रा) कल्याण करनेवाली (सुमतिः) उत्तम बुद्धि हम लोगों को और (ऋजूयताम्) कठिन विषयों को सरल करते हुए (देवानाम्) देनेवाले विद्वानों का (रातिः) विद्या आदि पदार्थों का देना (नः) हम लोगों को (अभि, नि, वर्त्तताम्) सब ओर से सिद्ध करे, सब गुणों से पूर्ण करे (वयम्) हम लोग (देवानाम्) विद्वानों की (सख्यम्) मित्रता को (उपा, सेदिम) अच्छे प्रकार पावें (देवाः) विद्वान् (नः) हम को (जीवसे) जीने के लिये (आयुः) जिस से प्राण का धारण होता, उस आयुर्दा को (प्र, तिरन्तु) पूरी भुगावें, वैसे तुम्हारे प्रति वर्त्ताव रक्खें ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को चाहिये कि पूर्ण शास्त्रवेत्ता विद्वानों के समीप से उत्तम बुद्धियों को पाकर ब्रह्मचर्य आश्रम से आयु को बढ़ा के सदैव धार्मिक जनों के साथ मित्रता रक्खें ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(देवानाम्) विदुषाम् (भद्रा) कल्याणकारी (सुमतिः) शोभना प्रज्ञा (ऋजूयताम्) सरलीकुर्वताम् (देवानाम्) दातॄणाम् (रातिः) विद्यादिदानम् (अभि) सर्वतः (नः) अस्मान् (नि) (वर्त्तताम्) (देवानाम्) विदुषाम् (सख्यम्) मित्रत्वम् (उप) (सेदिम) प्राप्नुयाम (आ) (वयम्) (देवाः) विद्वांसः (नः) अस्माकम् (आयुः) प्राणधारणम् (प्र) (तिरन्तु) पूर्णं भोजयन्तु (जीवसे) जीवितुम् ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा देवानां भद्रा सुमतिरस्मानृजूयतां देवानां रातिर्नोऽस्मानभिनिवर्त्ततां वयं देवानां सख्यमुपासेदिम देवा नो जीवस आयुः प्रतिरन्तु तथा युष्मान् प्रतिवर्त्तन्ताम् ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - सर्वैर्मनुष्यैराप्तानां विदुषां सकाशात् प्रज्ञाः प्राप्य ब्रह्मचर्येणायुः संवर्ध्य सदैव धार्मिकैः सह मित्रता रक्षणीया ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माणसांनी पूर्ण शस्रवेत्ते व विद्वान यांच्याकडून उत्तम बुद्धी प्राप्त करून ब्रह्मचर्य पालन करावे व आयुष्य वाढवावे व सदैव धार्मिक लोकांबरोबर मैत्री करावी.