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यऽआ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य॒ विश्व॑ऽउ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॑ दे॒वाः। यस्य॑ छा॒याऽमृतं॒ यस्य॑ मृ॒त्युः कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥१३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। आ॒त्म॒दा। इत्या॑त्म॒ऽदाः। ब॒ल॒दा इति॑ बल॒ऽदाः। यस्य॑। विश्वे॑। उ॒पास॑त॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते। प्र॒शिष॒मिति॑ प्र॒ऽशिष॑म्। यस्य॑। दे॒वाः। यस्य॑। छा॒या। अ॒मृत॑म्। यस्य॑। मृ॒त्युः। कस्मै॑। दे॒वाय॑। ह॒विषा॑। वि॒धे॒म॒ ॥१३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उपासना किया ईश्वर क्या देता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (आत्मदाः) आत्मा को देने और (बलदाः) बल देनेवाला (यस्य) जिस की (प्रशिषम्) उत्तम शिक्षा को (विश्वे) समस्त (देवाः) विद्वान् लोग (उपासते) सेवते (यस्य) जिसके समीप से सब व्यवहार उत्पन्न होते (यस्य) जिस का (छाया) आश्रय (अमृतम्) अमृतस्वरूप और (यस्य) जिसकी आज्ञा का भङ्ग (मृत्युः) मरण के तुल्य है, उस (कस्मै) सुखरूप (देवाय) स्तुति के योग्य परमात्मा के लिये हम लोग (हविषा) होमने के पदार्थ से (विधेम) सेवा का विधान करें ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस जगदीश्वर की उत्तम शिक्षा में की हुई मर्यादा में सूर्य आदि लोक नियम के साथ वर्त्तमान हैं, जिस सूर्य के विना जल की वर्षा और अवस्था का नाश नहीं होता, वह सवितृमण्डल जिसने बनाया है, उसी की उपासना सब मिलकर करें ॥१३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरुपासित ईश्वरः किं ददातीत्याह ॥

अन्वय:

(यः) (आत्मदाः) य आत्मानं ददाति सः (बलदाः) यो बलं ददाति सः (यस्य) (विश्वे) (उपासते) (प्रशिषम्) प्रशासनम् (यस्य) (देवाः) विद्वांसः (यस्य) (छाया) आश्रयः (अमृतम्) (यस्य) (मृत्युः) (कस्मै) (देवाय) (हविषा) (विधेम) ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! य आत्मदा बलदा यस्य प्रशिषं विश्वे देवा उपासते, यस्य सकाशात् सर्वे व्यवहारा जायन्ते, यस्यच्छायाऽमृतं यस्याज्ञाभङ्गो मृत्युस्तस्मै कस्मै देवाय वयं हविषा विधेम ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यस्य जगदीश्वरस्य प्रशासने कृतायां मर्यादायां सूर्यादयो लोका नियमेन वर्त्तन्ते, सूर्येण विना वर्षा आयुः क्षयश्च न जायते, स येन निर्मितस्तस्यैवोपासनां सर्वे मिलित्वा कुर्वन्तु ॥१३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो आत्मज्ञान देणारा, शरीर व आत्म्याला बळ देणारा, ज्याच्या व्यवस्थेने सूर्य वगैरे नियमाने चालतात. वृष्टी होते. ते सूर्यमंडळ ज्याने बनविले आहे व विद्वान लोक ज्याची उपासना करतात, त्याचा आश्रय घेतात. ज्याचा आज्ञाभंग म्हणजे मृत्यूसमान आहे त्याच परमेश्वराची सर्वांनी उपासना करावी.