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ए॒ण्यह्नो॑ म॒ण्डूको॒ मूषि॑का ति॒त्तिरि॒स्ते स॒र्पाणां॑ लोपा॒शऽआ॑श्वि॒नः कृष्णो॒ रात्र्या॒ऽऋक्षो॑ ज॒तूः सु॑षि॒लीका॒ तऽइ॑तरज॒नानां॒ जह॑का वैष्ण॒वी ॥३६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒णी। अह्नः॑। म॒ण्डूकः॑। मूषि॑का। ति॒त्तिरिः॑। ते। स॒र्पाणा॑म्। लो॒पा॒शः। आ॒श्वि॒नः ॥ कृष्णः॑। रात्र्यै॑। ऋक्षः॑। ज॒तूः। सु॒षि॒लीकेति॑ सुषि॒ऽलीका॑। ते। इ॒त॒र॒ज॒नाना॒मिती॑तरऽज॒नाना॑म्। जह॑का। वै॒ष्ण॒वी ॥३६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:24» मन्त्र:36


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम को जो (ऐणी) हरिणी है, वह (अह्नः) दिन के अर्थ जो (मण्डूकः) मेंडुका (मूषिका) मूषटी और (तित्तिरिः) तीतरि पक्षिणी हैं, (ते) वे (सर्पाणाम्) सर्पों के अर्थ जो (लोपाशः) कोई वनचर विशेष पशु वह (आश्विनः) अश्वि देवतावाला, जो (कृष्णः) काले रंग का हरिण आदि है, वह (रात्र्यै) रात्रि के लिये जो (ऋक्षः) रीछ (जतूः) जतू नामवाला और (सुषिलीका) सुषिलीका पक्षी है, (ते) वे (इतरजनानाम्) और मनुष्यों के अर्थ और (जहका) अङ्गों का संकोच करनेहारी पक्षिणी (वैष्णवी) विष्णु देवतावाली जानना चाहिये ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - जो दिन आदि के गुणवाले पशु-पक्षी विशेष हैं, वे उस-उस गुण से जानने चाहियें ॥३६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(एणी) मृगी (अह्नः) दिनस्य (मण्डूकः) (मूषिका) (तित्तिरिः) (ते) (सर्पाणाम्) (लोपाशः) वनचरपशुविशेषः (आश्विनः) अश्विदेवताकः (कृष्णः) कृष्णवर्णः (रात्र्यै) (ऋक्षः) भल्लूकः (जतूः) (सुषिलीका) एतौ च पक्षिविशेषौ (ते) (इतरजनानाम्) इतरे च ते जना इतरजनास्तेषाम् (जहका) गात्रसंकोचिनी (वैष्णवी) विष्णुदेवताका ॥३६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! युष्माभिर्यैणी साऽह्नो ये मण्डूको मूषिका तित्तिरिश्च ते सर्पाणां यो लोपाशः स आश्विनो यः कृष्णः स रात्र्यै य ऋक्षो जतूः सुषिलीका च त इतरजनानां या जहका सा वैष्णवी च विज्ञेयाः ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - ये दिनादिगुणाः पशुपक्षिविशेषास्ते तत्तद्गुणतो विज्ञेयाः ॥३६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे दिवसाच्या गुणांचे विशेष पशूपक्षी असतात. त्यांच्या गुणांना जाणले पाहिजे.