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प्र॒जाप॑तये च वा॒यवे॑ च गोमृ॒गो वरु॑णायार॒ण्यो मे॒षो य॒माय॒ कृष्णो॑ मनुष्यरा॒जाय॑ म॒र्कटः॑ शार्दू॒लाय॑ रो॒हिदृ॑ष॒भाय॑ गव॒यी क्षि॑प्रश्ये॒नाय॒ वर्त्ति॑का॒ नील॑ङ्गोः॒ कृमिः॑ समु॒द्राय॑ शिशु॒मारो॑ हि॒मव॑ते ह॒स्ती ॥३० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। च॒। वा॒यवे॑। च॒। गो॒मृ॒ग इति॑ गोऽमृ॒गः। वरु॑णाय। आ॒र॒ण्यः। मे॒षः। य॒माय॑। कृष्णः॑। म॒नु॒ष्य॒रा॒जायेति॑ मनुष्यऽरा॒जाय॑। म॒र्कटः॑। शा॒र्दू॒लाय॑। रो॒हित्। ऋ॒ष॒भाय॑। ग॒व॒यी। क्षि॒प्र॒श्ये॒नायेति॑ क्षिप्रऽश्ये॒नाय॑। वर्त्ति॑का। नील॑ङ्गोः। कृमिः॑। स॒मु॒द्राय॑। शि॒शु॒मार॒ऽइति॑ शिशु॒ऽमारः॑। हि॒मवत॒ऽइति॑ हि॒मऽव॑ते। ह॒स्ती ॥३० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:24» मन्त्र:30


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुमको (प्रजापतये) प्रजा पालनेवाले (च) और उस के सम्बन्धियों तथा (वायवे) वायु (च) और वायु के सम्बन्धी पदार्थों के लिये (गोमृगः) जो पृथिवी को शुद्ध करता वह (वरुणाय) अति उत्तम के लिये (आरण्यः) वन का (मेषः) मेंढा (यमाय) न्यायाधीश के लिये (कृष्णः) काला हरिण (मनुष्यराजाय) मनुष्यों के राजा के लिये (मर्कटः) वानर (शार्दूलाय) बड़े सिंह अर्थात् केशरी के लिये (रोहित्) लाल मृग (ऋषभाय) श्रेष्ठ सभ्य पुरुष के लिये (गवयी) नीलगाहिनी (क्षिप्रश्येनाय) शीघ्र चलने हारे बाज पखेरू के समान जो वर्त्तमान उस के लिये (वर्त्तिका) वतक (नीलङ्गोः) जो नील को प्राप्त होता उस छोटे कीड़े के हेतु (कृमिः) छोटा कीड़ा (समुद्राय) समुद्र के लिये (शिशुमारः) बालकों को मारनेवाला शिशुमार और (हिमवते) जिसके अनेकों हिमखण्ड विद्यमान हैं, उस पर्वत के लिये (हस्ती) हाथी अच्छे प्रकार युक्त करना चाहिये ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य मनुष्यसम्बन्धी उत्तम प्राणियों की रक्षा करते हैं, वे साङ्गोपाङ्ग बलवान् होते हैं ॥३० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(प्रजापतये) प्रजापालकाय (च) तत्सम्बन्धिभ्यः (वायवे) (च) तत्सम्बन्धिभ्यः (गोमृगः) यो गां मार्ष्टि शुन्धति सः (वरुणाय) (आरण्यः) वने भवः (मेषः) अविजातिविशेषः (यमाय) न्यायाधीशाय (कृष्णः) कृष्णगुणविशिष्टः (मनुष्यराजाय) नरेशाय (मर्कटः) वानरः (शार्दूलाय) महासिंहाय (रोहित्) रक्तगुणविशिष्टो मृगः (ऋषभाय) श्रेष्ठाय सभ्याय (गवयी) गवयस्य स्त्री (क्षिप्रश्येनाय) क्षिप्रगामिने श्येनायेव वर्त्तमानाय (वर्त्तिका) (नीलङ्गोः) यो नीलं गच्छति तस्य (कृमिः) क्षुद्रजन्तुविशेषः (समुद्राय) (शिशुमारः) बालहन्ता (हिमवते) बहूनि हिमानि विद्यन्ते यस्य तस्मै (हस्ती) ॥३० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः युष्माभिः प्रजापतये च वायवे च गोमृगो वरुणायारण्यो मेषो यमाय कृष्णो मनुष्यराजाय मर्कटः शार्दूलाय रोहिदृषभाय गवयी क्षिप्रश्येनाय वर्त्तिका नीलङ्गोः कृमिः समुद्राय शिशुमारो हिमवते हस्ती च सम्प्रयोक्तव्यः ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या मनुष्यसम्बन्ध्युत्तमान् प्राणिनो रक्षन्ति, ते साङ्गोपाङ्गबला जायन्ते ॥३० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे माणसांना उपयोगी पडणाऱ्या प्राण्यांचे रक्षण करतात ती पूर्णपणे शक्तिवान असतात.