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अह्ने॑ पा॒राव॑ता॒नाल॑भते॒ रात्र्यै॑ सीचा॒पूर॑होरा॒त्रयोः॑ स॒न्धिभ्यो॑ ज॒तूर्मासे॑भ्यो दात्यौ॒हान्त्सं॑वत्स॒राय॑ मह॒तः सु॑प॒र्णान् ॥२५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अह्ने॑। पा॒राव॑तान्। आ। ल॒भ॒ते॒। रात्र्यै॑। सी॒चा॒पूः। अ॒हो॒रा॒त्रयोः॑। स॒न्धिभ्य॒ इति॑ स॒न्धिऽभ्यः॑। ज॒तूः। मासे॑भ्यः। दा॒त्यौ॒हान्। सं॒व॒त्स॒राय॑। म॒ह॒तः। सु॒प॒र्णानिति॑ सुऽप॒र्णान् ॥२५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:24» मन्त्र:25


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे काल का जाननेवाला (अह्ने) दिवस के लिये (पारावतान्) कोमल शब्द करनेवाले कबूतरों (रात्र्यै) रात्रि के लिये (सीचापूः) सीचापू नामक पक्षियों (अहोरात्रयोः) दिन-रात्रि के (सन्धिभ्यः) सन्धियों अर्थात् प्रातः सायंकाल के लिये (जतूः) जतूनामक पक्षियों (मासेभ्यः) महीनों के लिये (दात्यौहान्) काले कौओं और (संवत्सराय) वर्ष के लिये (महतः) बड़े-बड़े (सुपर्णान्) सुन्दर-सुन्दर पंखोंवाले पक्षियों को (आ, लभते) अच्छे प्रकार प्राप्त होता है, वैसे तुम भी इन को प्राप्त होओ ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य अपने-अपने समय के अनुकूल क्रीड़ा करनेवाले पक्षियों के स्वभाव को जानकर अपने स्वभाव को वैसा करें, वे बहुत जाननेवाले हों ॥२५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अह्ने) दिवसाय (पारावतान्) कलरवान् (आ) (लभते) (रात्र्यै) (सीचापूः) पक्षिविशेषान् (अहोरात्रयोः) (सन्धिभ्यः) (जतूः) पक्षिविशेषान् (मासेभ्यः) (दात्यौहान्) कृष्णकाकान् (संवत्सराय) वर्षाय (महतः) (सुपर्णान्) शोभनपक्षान् पक्षिणः ॥२५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा कालविज्जनोऽह्ने पारावतान् रात्र्यै सीचापूरहोरात्रयोः सन्धिभ्यो जतूर्मासेभ्यो दात्यौहान्त्संवत्सराय महतः सुपर्णानालभते, तथा यूयमप्येतानालभध्वम् ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः स्वस्वसमयानुकूलक्रीडकानां पक्षिणां स्वभावं कुर्य्युस्ते बहुविदस्स्युः ॥२५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे आपापल्या ऋतुकाळानुसार क्रीडा करणाऱ्या पक्ष्यांचे स्वभाव जाणतात व त्यांचे अनुकरण करतात किंवा आपला स्वभाव तसा बनवितात त्यांना पुष्कळ ज्ञान प्राप्त होते.