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कः स्वि॑देका॒की चर॑ति॒ कऽउ॑ स्विज्जायते॒ पुनः॑। किस्वि॑द्धि॒मस्य॑ भेष॒जं किम्वा॒वप॑नं म॒हत्॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कः। स्वि॒त्। ए॒का॒की। च॒र॒ति॒। कः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। स्वि॒त्। जा॒य॒ते॒। पुन॒रिति॒ पुनः॑। किम्। स्वित्। हि॒मस्य॑। भे॒ष॒जम्। किम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। आ॒वप॑न॒मित्या॒ऽवप॑नम्। म॒हत्॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:9


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वान् जनों को क्या-क्या पूछना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! हम लोग तुम को पूछते हैं कि (कः स्वित्) कौन (एकाकी) एकाएकी अकेला (चरति) विचरता है? (उ) और (कः, स्वित्) कौन (पुनः) बार-बार (जायते) प्रगट होता है? (किम्, स्वित्) क्या (हिमस्य) शीत का (भेषजम्) औषध और (किम्) क्या (उ) तो (महत्) बड़ा (आवपनम्) बीज बोने का स्थान है? ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - इन उक्त प्रश्नों के उत्तर अगले मन्त्र में कहे हुए हैं, यह जानना चाहिये। मनुष्यों को योग्य है कि सदा इसी प्रकार के प्रश्न किया करें ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वांसः किं किं प्रष्टव्या इत्याह ॥

अन्वय:

(कः) (स्वित्) प्रश्ने (एकाकी) असहायः (चरति) गच्छति (कः) (उ) वितर्के (स्वित्) (जायते) (पुनः) (किम्) (स्वित्) (हिमस्य) शीतस्य (भेषजम्) औषधम् (किम्) (उ) (आवपनम्) समन्ताद् वपति यस्मिंस्तत् (महत्) विस्तीर्णम् ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वांसो वयं युष्मान् कः स्विदेकाकी चरति, क उ स्वित्पुनः पुनर्जायते किं स्विद्धिमस्य भेषजं किमु महदावपनमस्तीति पृच्छामः ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - एतेषां प्रश्नानामुत्तरस्मिन् मन्त्र उत्तराणि कथितानीति वेद्यम्। मनुष्या ईदृशानेव प्रश्नान् कुर्युः ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - कोण एकटा फिरतो? कोण वारंवार प्रकाशित होतो? सर्दीचे औषध कोणते? बीजवपनाचे स्थन कोणते? या प्रश्नांची उत्तरे पुढील मंत्रात दिलेली आहेत, हे जाणावे. माणसांनी अशा प्रकारचे प्रश्न नेहमी विचारावेत.