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वेदा॒हम॒स्य भुव॑नस्य॒ नाभिं॒ वेद॒ द्यावा॑पृथि॒वीऽअ॒न्तरि॑क्षम्। वेद॒ सूर्य॑स्य बृह॒तो ज॒नित्र॒मथो॑ वेद च॒न्द्रम॑सं यतो॒जाः ॥६० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वेद॑। अ॒हम्। अ॒स्य। भुव॑नस्य। नाभि॑म्। वेद॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ द्यावा॑पृथि॒वी। अ॒न्तरि॑क्षम्। वेद॑। सूर्य॑स्य। बृ॒ह॒तः। ज॒नित्र॑म्। अथो॒ इत्यथो॑। वे॒द॒। च॒न्द्रम॑सम्। य॒तो॒जा इति॑ य॒तःऽजाः ॥६० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:60


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पूर्व मन्त्र में कहे प्रश्नों के उत्तर अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासो पुरुष ! (अस्य) इस (भुवनस्य) सब के अधिकरण जगत् के (नाभिम्) बन्धन के स्थान कारणरूप मध्यभाग परब्रह्म को (अहम्) मैं (वेद) जानता हूँ तथा (द्यावापृथिवी) प्रकाशित और अप्रकाशित लोकसमूहों और (अन्तरिक्षम्) आकाश को भी (वेद) मैं जानता हूँ (बृहतः) बड़े (सूर्य्यस्य) सूर्यलोक के (जनित्रम्) उपादान तैजस कारण और निमित्तकारण ब्रह्म को (वेद) मैं जानता हूँ (अथो) इस के अनन्तर (यतोजाः) जिस परमात्मा से उत्पन्न हुआ जो चन्द्र उस परमात्मा को तथा (चन्द्रमसम्) चन्द्रमा को (वेद) मैं जानता हूँ ॥६० ॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् उत्तर देवे कि हे जिज्ञासु पुरुष ! इस जगत् के बन्धन अर्थात् स्थिति के कारण, प्रकाशित मध्यस्थ आकाश, इन तीनों लोक के कारण और सूर्य्य चन्द्रमा के उपादान और निमित्तकारण इस सब को मैं जानता हूँ, ब्रह्म ही इस सब का निमित्तकारण और प्रकृति उपादानकारण है ॥६० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पूर्वप्रश्नानामुत्तराण्याह ॥

अन्वय:

(वेद) (अहम्) (अस्य) (भुवनस्य) (नाभिम्) बन्धनम्। (वेद) (द्यावापृथिवी) प्रकाशाप्रकाशौ लोकसमूहौ (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (वेद) (सूर्यस्य) (बृहतः) महत्परिमाणयुक्तस्य (जनित्रम्) (अथो) (वेद) (चन्द्रमसम्) (यतोजाः) ॥६० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासोऽस्य भुवनस्य नाभिमहं वेद, द्यावापृथिवी अन्तरिक्षं वेद, बृहतः सूर्य्यस्य जनित्रं वेद। अथो यतोजास्तं चन्द्रमसञ्चाहं वेद ॥६० ॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् ब्रूयात्−हे जिज्ञासोऽस्य जगतो बन्धनस्थितिकारणं, लोकत्रयस्य कारणं, सूर्य्याचन्द्रमसोश्चोपादाननिमित्ते एतत्सर्वमहं जानामि, ब्रह्मैवास्य सर्वस्य निमित्तं कारणं प्रकृतिश्चोपादानमिति ॥६० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानाने उत्तर द्यावे की, हे जिज्ञासू पुरुषा ! या जगाच्या बंधनाचे अर्थात स्थितीचे कारण, प्रकाशित व अप्रकाशित लोक, मध्यस्थ आकाश या तीन लोकांचे कारण, सूर्य चंद्राचे उपादान व निमित्त कारण या सर्वांना मी जाणतो. तो परमब्रह्मच या सर्वांचे निमित्त करण असून प्रकृती ही उपादान कारण आहे.