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र॒ज॒ता हरि॑णीः॒ सीसा॒ युजो॑ युज्यन्ते॒ कर्म॑भिः। अश्व॑स्य वा॒जिन॑स्त्व॒चि सिमाः॑ शम्यन्तु॒ शम्य॑न्तीः ॥३७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

र॒ज॒ताः। हरि॑णीः। सीसाः॑। युजः॑। यु॒ज्य॒न्ते॒। कर्म॑भिरिति॒ कर्म॑ऽभिः। अश्व॑स्य। वा॒जिनः॑। त्व॒चि। सिमाः॑। श॒म्य॒न्तु॒। शम्य॑न्तीः ॥३७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:37


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसी हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे स्वयंवर विवाह से विवाही हुई स्त्री (वाजिनः) प्रशंसित बलयुक्त (अश्वस्य) उत्तम गुणों में व्याप्त अपने पति के (त्वचि) उढ़ाने में (युज्यन्ते) संयुक्त की जाती अर्थात् पति को वस्त्र उढ़ाने आदि सेवा में लगाई जाती हैं, वैसे (कर्मभिः) धर्मयुक्त क्रियाओं से (रजताः) अनुराग अर्थात् प्रीति को प्राप्त हुई (हरिणीः) जिनका प्रशंसित स्वीकार करना है, वे (सीसाः) प्रेमवाली (युजः) सावधानचित्त, उचित काम करनेवाली (शम्यन्तीः) शान्ति को प्राप्त होती वा प्राप्त कराती हुई वा (सिमाः) प्रेम से बँधी स्त्री अपने हृदय से प्रिय पतियों को प्राप्त हो के (शम्यन्तु) आनन्द भोगें ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो विद्या और अच्छी शिक्षा से युक्त आप विवाह को प्राप्त स्त्री-पुरुष अपनी इच्छा से एक-दूसरे से प्रीति किये हुए विवाह को करते हैं, वे लावण्य अर्थात् अतिसुन्दरता गुण और उत्तम स्वभावयुक्त सन्तानों को उत्पन्न कर सदा आनन्दयुक्त होते हैं ॥३७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ताः कीदृशो भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

(रजताः) अनुरक्ताः (हरिणीः) प्रशस्तो हरणं विद्यते यासां ताः (सीसाः) प्रेमबन्धिकाः। अत्र ‘षिञ् बन्धने’ इत्यस्मादौणादिकः क्सः प्रत्ययोऽन्येषामपीति दीर्घः (युजः) समाहिताः (युज्यन्ते) (कर्मभिः) धर्म्याभिः क्रियाभिः (अश्वस्य) व्याप्तुं शीलस्य (वाजिनः) प्रशस्तबलवतः (त्वचि) संवरणे (सिमाः) प्रेम्णा बद्धाः (शम्यन्तु) आनन्दन्तु (शम्यन्तीः) शमं प्राप्नुवतीः प्रापयन्त्यो वा ॥३७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यथा स्वयंवरा वाजिनोऽश्वस्य त्वचि संयुज्यन्ते तथा कर्मभी रजता हरिणीः सीसा युजः शम्यन्तीः सिमा हृद्यान् पतीन् प्राप्य शम्यन्तु ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! ये सुशिक्षिताः स्वयंवरा भूत्वा स्त्रीपुरुषाः स्वेच्छया परस्परस्मिन् प्रीता विवाहं कुर्वन्ति, ते भद्रान् लावण्यगुणस्वभावयुक्तान् सन्तानानुत्पाद्य सदानन्दन्ति ॥३७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! विद्या व चांगले शिक्षण यांनी युक्त जे विवाहेच्छू स्री-पुरुष एकमेकांवर प्रेम करून विवाह करतात ते अतिसुंदर, गुणवान व उत्तम स्वभाव असलेल्या संतानांना उत्पन्न करून नेहमी आनंदात राहतात.