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गा॒य॒त्री त्रि॒ष्टुब्जग॑त्यनु॒ष्टुप्प॒ङ्क्त्या स॒ह। बृ॒ह॒त्यु᳕ष्णिहा॑ क॒कुप्सू॒चीभिः॑ शम्यन्तु त्वा ॥३३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गा॒य॒त्री। त्रि॒ष्टुप्। त्रि॒स्तुबिति॑ त्रि॒ऽस्तुप्। जग॑ती। अ॒नु॒ष्टुप्। अ॒नु॒स्तुबित्य॑नु॒ऽस्तुप्। प॒ङ्क्त्या। स॒ह। बृ॒ह॒ती। उ॒ष्णिहा॑। क॒कुप्। सू॒चीभिः॑। श॒म्य॒न्तु॒। त्वा॒ ॥३३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:33


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो विद्वान् जन (पङ्क्त्या) विस्तारयुक्त पङ्क्ति छन्द के (सह) साथ जो (गायत्री) गानेवाले की रक्षा करती हुई गायत्री (त्रिष्टुप्) आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक इन तीनों दुःखों को रोकनेवाला त्रिष्टुप् (जगती) जगत् के समान विस्तीर्ण अर्थात् फैली हुई जगती (अनुष्टुप्) जिससे पीछे से संसार के दुःखों को रोकते हैं, वह अनुष्टुप् तथा (उष्णिहा) जिससे प्रातः समय की वेला को प्राप्त करता है, उस उष्णिह् छन्द के साथ (बृहती) गम्भीर आशयवाली बृहती (ककुप्) ललित पदों के अर्थ से युक्त ककुप् छन्द (सूचीभिः) सूइयों से जैसे वस्त्र सिया जाता है, वैसे (त्वा) तुझको (शम्यन्तु) शान्तियुक्त करें वा सब विद्याओं का बोध करावें, उनका तू सेवन कर ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् गायत्री आदि छन्दों के अर्थ को बताने से मनुष्यों को विद्वान् करते हैं और सूई से फटे वस्त्र को सीवें त्यों अलग-अलग मतवालों का सत्य में मिलाप कर देते हैं और उनको एक मत में स्थापन करते हैं, वे जगत् के कल्याण करनेवाले होते हैं ॥३३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(गायत्री) गायन्तं त्रायमाणा (त्रिष्टुप्) याऽऽध्यात्मिकाधिभौतिकाधिदैविकानि त्रीणि सुखानि स्तोभते स्तभ्नाति सा (जगति) जगद्वद्विस्तीर्णा (अनुष्टुप्) ययाऽनुष्टोभते सा (पङ्क्त्या) विस्तृतया क्रियया (सह) (बृहती) महदर्था (उष्णिहा) यया उषः स्निह्यति तया (ककुप्) लालित्ययुक्ता (सूचीभिः) सीवनसाधिकाभिः (शम्यन्तु) (त्वा) त्वाम् ॥३३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! ये विद्वांसः पङ्क्त्या सह गायत्री त्रिष्टुब्जगत्यनुष्टुबुष्णिहा सह बृहती ककुप्सूचीभिरिव त्वा त्वां शम्यन्तु तांस्त्वं सेवस्व ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसो गायत्र्यादिच्छन्दोऽर्थविज्ञापनेन मनुष्यान् विदुषः कुर्वन्ति, सूच्या छिन्नं वस्त्रमिव भिन्नमतान्यनुसंदधत्यैकमत्ये स्थापयन्ति, ते जगत्कल्याणकारका भवन्ति ॥३३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे फाटलेले वस्र सुईने शिवता येते तसे वेगवेगळ्या मतांच्या लोकांना सत्याबाबत एकमत करून जे विद्वान गायत्री इत्यादी छंदांचे अर्थ सांगतात आणि माणसांना विद्वान करतात ते जगाचे कल्याण करतात.