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द॒धि॒क्राव्णो॑ऽअकारिषं जि॒ष्णोरश्व॑स्य वा॒जिनः॑। सु॒र॒भि नो॒ मुखा॑ कर॒त्प्र ण॒ऽआयू॑षि तारिषत्॥३२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द॒धि॒क्राव्ण॒ इति दधि॒ऽक्राव्णः॑। अ॒का॒रि॒ष॒म्। जि॒ष्णोः। अश्व॑स्य। वा॒जिनः॑। सु॒र॒भि। नः॒। मुखा॑। क॒र॒त्। प्र। नः॒। आयू॑ꣳषि। ता॒रि॒ष॒त्॥३२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:32


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा किस के समान क्या बढ़ावे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जैसे मैं (दधिक्राव्णः) जो धारण-पोषण करनेवालों को प्राप्त होता (वाजिनः) बहुत वेगयुक्त (जिष्णोः) जीतने और (अश्वस्य) शीघ्र जानेवाला है, उस घोड़े के समान पराक्रम को (अकारिषम्) करूँ, वैसे आप (नः) हम लोगों के (सुरभि) सुगन्धियुक्त (मुखा) मुखों के तुल्य पराक्रम को (प्र, करत्) भलीभाँति करो और (नः) हमारे (आयूंषि) आयुओं को (तारिषत्) उनकी अवधि के पार पहुँचाओ ॥३२ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे घोड़ों के सिखानेवाले घोड़ों को पराक्रम की रक्षा के नियम से बलिष्ठ और संग्राम में जितानेवाले करते हैं, वैसे पढ़ाने और उपदेश करनेहारे कुमार और कुमारियों को पूरे ब्रह्मचर्य्य के सेवन से पण्डित, पण्डिता कर उनको शरीर और आत्मा के बल के लिए प्रवृत्त करा के बहुत आयुवाले और अति युद्ध करने में कुशल बनावें ॥३२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा कस्येव किं वर्द्धयेदित्याह ॥

अन्वय:

(दधिक्राव्णः) यो दधीन् पोषकान् धारकान् वा क्राम्यति तस्य (अकारिषम्) कुर्य्याम् (जिष्णोः) जयशीलस्य (अश्वस्य) आशुगामिनः (वाजिनः) बहुवेगवतः (सुरभि) प्रशस्तसुगन्धियुतानि (नः) अस्माकम् (मुखा) मुखानि (करत्) कुर्य्यात् (प्र) (नः) अस्माकम् (आयूंषि) (तारिषत्) सन्तारयेत्॥३२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! यथाऽहं दधिक्राव्णो वाजिनो जिष्णोरश्वस्येव वीर्यमकारिषं तथा भवान् नः सुरभि मुखेव वीर्यं प्रकरन्न आयूंषि तारिषत्॥३२ ॥
भावार्थभाषाः - यथाऽश्वशिक्षका अश्वान् वीर्यरक्षणनियमेन बलिष्ठान् संग्रामे विजयनिमित्तान् कुर्वन्ति, तथैवाध्यापकोपदेशकाः कुमारान् कुमारींश्च पूर्णेन ब्रह्मचर्यसेवनेन विद्यायुक्तान् विदुषीश्च कृत्वा शरीरात्मबलाय प्रवर्त्तय्य दीर्घायुषो युद्धशालीनान् सम्पादयेयुः ॥३२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे अश्वशिक्षक घोड्यांना पराक्रमी, रक्षक, वेगवान, बलिष्ठ व युद्धात जिंकणारे बनवितात तसे अध्यापन व उपदेश करणाऱ्यांनी कुमार व कुमारींना पूर्ण ब्रह्मचर्याने पंडित व पंडिता बनवून शरीर व आत्म्याचे बल वाढविण्यास प्रवृत्त करावे व दीर्घायुषी बनवावे, तसेच युद्धकुशलही बनवावे.