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मा॒ता च॑ ते पि॒ता च॒ तेऽग्रं॑ वृ॒क्षस्य॑ रोहतः। प्रति॑ला॒मीति॑ ते पि॒ता ग॒भे मु॒ष्टिम॑तꣳसयत्॥२४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा॒ता। च॒। ते॒। पि॒ता। च॒। ते॒। अग्र॑म्। वृ॒क्षस्य॑। रो॒ह॒तः॒। प्रति॑लामि। इति॑। ते॑। पि॒ता। ग॒भे। मु॒ष्टिम्। अ॒त॒ꣳस॒य॒त्॥२४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:24


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! यदि (ते) आपकी (माता) पृथिवी के तुल्य सहनशील मान करनेवाली माता (च) और (ते) आपका (पिता) सूर्य्य के समान तेजस्वी पालन करनेवाला पिता (च) भी (वृक्षस्य) छेदन करने योग्य संसार रूप वृक्ष के राज्य की (अग्रम्) मुख्य श्री शोभा वा लक्ष्मी पर (रोहतः) आरुढ़ होते हैं, (ते) आपका (पिता) पिता (गभे) प्रजा में (मुष्टिम्) मुट्ठी से धन लेनेवाले राज्य को, धन लेकर (अतंसयत्) प्रकाशित करता है तो मैं (इति) इस प्रकार प्रजाजन (प्रतिलामि) भलीभाँति उस राजा से प्रीति करता हूँ ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो माता-पिता पृथिवी और सूर्य्य के तुल्य धैर्य और विद्या से प्रकाश को प्राप्त न्याय से राज्य को पाल कर, उत्तम लक्ष्मी वा शोभा को पाकर, प्रजा को सुशोभित कर, अपने पुत्र को राजनीति से युक्त करें, वे राज्य करने को योग्य हों ॥२४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(माता) पृथिवीव वर्त्तमाना माता (च) (ते) तव (पिता) सूर्य्य इव वर्त्तमानः पिता (च) (ते) तव (अग्रम्) मुख्यश्रियम् (वृक्षस्य) व्रश्चितुं छेत्तुं योग्यस्य संसाराख्यस्य राज्यस्य (रोहतः) (प्रतिलामि) स्निह्यामि (इति) (ते) तव (पिता) (गभे) प्रजायाम् (मुष्टिम्) मुष्ट्या धनग्राहकं राज्यम् (अतंसयत्) तंसयत्यलङ्करोति ॥२४ ॥ इयं वै माताऽसौ पिताभ्यामेवैनं स्वर्गं लोकं गमयत्यग्रं वृक्षस्य रोहत इति। श्रीर्वैराष्ट्रस्याग्रं श्रियमेवैनं राष्ट्रस्याग्रं गमयति प्रतिलामीति ते पिता गभे मुष्टिमतंसयदिति। विड्वै गभो राष्ट्रं मुष्टी राष्ट्रमेवाविश्याहन्ति, तस्माद् राष्ट्री विशं घातुकः ॥ (शत०१२.२.३.७)

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! यदि ते पृथिवीव माता च सूर्य्य इव ते पिता च वृक्षस्याग्रं रोहतः। यदि ते पिता गभे मुष्टिमतंसयत्तर्हि प्रजाजनोऽहम्प्रतिलामीति ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - यौ मातापितरौ पृथिवीसूर्य्यवर्द्धैर्यविद्याप्रकाशितौ न्यायेन राज्यं पालयित्वाग्र्यां श्रियं प्राप्य प्रजा भूषयित्वा स्वस्य पुत्रं राजनीत्या युक्तं कुर्यातां तौ राज्यं कर्तुमर्हेताम् ॥२४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे माता-पिता, पृथ्वी व सूर्य यांच्याप्रमाणे धैर्य व विद्या, तसेच न्यायमार्गाने राज्याचे पालन करून उत्तम लक्ष्मी प्राप्त करून प्रजेला सुशोभित करतात व आपल्या पुत्रांना राजनीतिनिपुण करतात ते राज्य करण्यायोग्य असतात.