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सूर्य॑ऽएका॒की च॑रति च॒न्द्रमा॑ जायते॒ पुनः॑। अ॒ग्निर्हि॒मस्य॑ भेष॒जं भूमि॑रा॒वप॑नं म॒हत्॥१० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सूर्यः॑। ए॒का॒की। च॒र॒ति॒। च॒न्द्रमाः॑। जा॒य॒ते॒। पुन॒रिति॒ऽपुनः॑। अ॒ग्निः। हि॒मस्य॑। भे॒ष॒जम्। भूमिः॑। आ॒वप॑न॒मित्या॒वप॑नम्। म॒हत्॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:10


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पिछले मन्त्र में कहे प्रश्नों के उत्तर को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जानने की इच्छा करनेवाले मनुष्यो ! (सूर्य्यः) सूर्य्य (एकाकी) बिना सहाय अपनी कक्षा में (चरति) चलता है, (पुनः) फिर इसी सूर्य के प्रकाश से (चन्द्रमाः) चन्द्रलोक (जायते) प्रकाशित होता है। (अग्निः) आग (हिमस्य) शीत का (भेषजम्) औषध है। (भूमिः) पृथिवी (महत्) बड़ा (आवपनम्) बोने का स्थान है, इसको तुम लोग जानो ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - इस संसार में सूर्यलोक अपनी आकर्षण शक्ति से अपनी ही कक्षा में वर्त्तमान है और उसी के प्रकाश से चन्द्र आदि लोक प्रकाशित होते हैं। अग्नि के समान शीत के हटाने को कोई वस्तु और पृथिवी के तुल्य बड़ा पदार्थों के बोने का स्थान नहीं है, यह मनुष्यों को जानना चाहिये। १० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ पूर्वोक्तप्रश्नानामुत्तराण्याह ॥

अन्वय:

(सूर्य्यः) सविता (एकाकी) (चरति) (चन्द्रमाः) चन्द्रलोकः (जायते) (पुनः) (अग्निः) पावकः (हिमस्य) (भेषजम्) (भूमिः) (आवपनम्) (महत्) ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासवो मनुष्याः ! सूर्य्य एकाकी चरति पुनश्चन्द्रमाः प्रकाशितो जायते। अग्निर्हिमस्य भेषजं भूमिर्महदावपनमस्तीति यूयं वित्त ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - अस्मिन् संसारे सूर्य्यः स्वाकर्षणेन स्वस्यैव कक्षायां वर्त्तते, तस्यैव प्रकाशेन चन्द्रादयो लोकाः प्रकाशिता भवन्ति। अग्निना तुल्यं शीतनिवारकं वस्तु, पृथिव्या तुल्यं महत्क्षेत्रं किमपि नास्तीति मनुष्यैर्वेदितव्यम् ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगात सूर्य आपल्या आकर्षणशक्तीने एकटा आपल्या कक्षेत फिरतो. त्याच्या प्रकाशानेच चंद्र इत्यादी प्रकाशित होतात. सर्दी कमी करण्यासाठी अग्नीसारखा दुसरा पदार्थ नाही व बी पेरण्यासाठी पृथ्वीहून मोठी वस्तू नाही, हे माणसांनी जाणावे.