एक॑स्मै॒ स्वाहा॑ द्वाभ्या॒ स्वाहा॑ श॒ताय॒ स्वाहैक॑शताय॒ स्वाहा॑ व्युष्ट्यै॒ स्वाहा॑ स्व॒र्गाय॒ स्वाहा॑ ॥३४ ॥
एक॑स्मै। स्वाहा॑। द्वाभ्या॑म्। स्वाहा॑। श॒ताय॑। स्वाहा॑। एक॑शता॒येत्येक॑ऽशताय। स्वाहा॑। व्युष्ट्या॒ इति॒ विऽउ॑ष्ट्यै॒। स्वाहा॑। स्व॒र्गायेति॑ स्वः॒ऽगाय॑। स्वाहा॑ ॥३४ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर किसके अर्थ यज्ञ का अनुष्ठान करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः किमर्थो यज्ञोऽनुष्ठातव्य इत्याह ॥
(एकस्मै) अद्वितीयाय परमात्मने (स्वाहा) सत्या क्रिया (द्वाभ्याम्) कार्यकारणाभ्याम् (स्वाहा) (शताय) असंख्याताय पदार्थाय (स्वाहा) (एकशताय) एकाधिकाय शताय (स्वाहा) (व्युष्ट्यै) प्रदीप्तायै दाहक्रियायै (स्वाहा) (स्वर्गाय) सुखगमकाय पुरुषार्थाय (स्वाहा) ॥३४ ॥