अ॒ग्नये॒ स्वाहा॒ सोमा॑य॒ स्वाहेन्द्रा॑य॒ स्वाहा॑ पृथि॒व्यै स्वाहा॒ऽन्तरि॑क्षाय॒ स्वाहा॑ दि॒वे स्वाहा॑ दि॒ग्भ्यः स्वाहाऽऽशा॑भ्यः॒ स्वाहो॒र्व्यै᳖ दि॒शे स्वाहा॒र्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॑ ॥२७ ॥
अ॒ग्नये॑। स्वाहा॑। सोमा॑य। स्वाहा॑। इन्द्रा॑य। स्वाहा॑। पृ॒थि॒व्यै। स्वाहा॑। अ॒न्तरि॑क्षाय। स्वाहा॑। दि॒वे। स्वाहा॑। दि॒ग्भ्य इति॑ दि॒क्ऽभ्यः। स्वाहा॑। आशा॑भ्यः। स्वाहा॑। उ॒र्व्यै᳖। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑ ॥२७ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(अग्नये) जाठराग्नये (स्वाहा) (सोमाय) उत्तमाय रसाय (स्वाहा) (इन्द्राय) जीवाय विद्युते परमैश्वर्याय वा (स्वाहा) (पृथिव्यै) (स्वाहा) (अन्तरिक्षाय) आकाशाय (स्वाहा) (दिवे) प्रकाशाय (स्वाहा) (दिग्भ्यः) (स्वाहा) (आशाभ्यः) व्यापिकाभ्यः (स्वाहा) (उर्व्यै) बहूरूपायै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) निम्नायै (दिशे) (स्वाहा) ॥२७ ॥