प्राच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॒ दक्षि॑णायै दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॑ प्र॒तीच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहोदी॑च्यै दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहो॒र्ध्वायै॑ दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहाऽवा॑च्यै दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॑ ॥२४ ॥
प्राच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। दक्षि॑णायै। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। प्र॒तीच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। उदी॑च्यै। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। ऊ॒र्ध्वायै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अवा॑च्यै। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑ ॥२४ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर किसलिये होम करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः किमर्थो होमः कर्त्तव्य इत्याह ॥
(प्राच्यै) या प्राञ्चति प्रथमादित्यसंयोगात्तस्यै (दिशे) (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रविद्यायुक्ता वाक् (अर्वाच्यै) यार्वागधोञ्चति तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (दक्षिणायै) या पूर्वमुखस्य पुरुषस्य दक्षिणबाहुसन्निधौ वर्त्तते तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) अधस्ताद्वर्त्तमानायै (दिशे) (स्वाहा) (प्रतीच्यै) या प्रत्यक् अञ्चति पूर्वमुखस्थितपुरुषस्य पृष्ठभागा तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) (दिशे) (स्वाहा) (उदीच्यै) योदक्पूर्वाभिमुखस्य जनस्य वामभागमञ्चति तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) (दिशे) (स्वाहा) (ऊर्ध्वायै) ऊर्ध्ववर्त्तमानायै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) या अवविरुद्धमञ्चति तस्यै उपदिशे (दिशे) (स्वाहा) (अवाच्यै) (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) (दिशे) (स्वाहा) ॥२४ ॥