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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब यज्ञकर्मविषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो (समिधानः) भलीभाँति दीपता हुआ अग्नि (देवेषु) दिव्य वायु आदि पदार्थों में (हव्या) लेने-देने योग्य पदार्थों को (नः) हमारे लिये (दधत्) धारण करता है, उस (अमर्त्यम्) कारणरूप अर्थात् परमाणुभाव से विनाश होने के धर्म से रहित (अग्निम्) आग को (स्तोमेन) इन्धनसमूह से (बोधय) चिताओ अर्थात् अच्छे प्रकार जलाओ ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - यदि अग्नि में समिधा छोड़ दिव्य-दिव्य सुगन्धित पदार्थ को होमें तो यह अग्नि उस पदार्थ को वायु आदि में फैला के सब प्राणियों को सुखी करता है ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ यज्ञकर्मविषयमाह ॥
अन्वय:
(अग्निम्) पावकम् (स्तोमेन) इन्धनसमूहेन (बोधय) (समिधानः) प्रदीप्यमानः (अमर्त्यम्) कारणरूपेण मरणधर्मरहितम् (हव्या) आदातुं दातुमर्हाणि (देवेषु) दिव्येषु वाय्वादिषु (नः) अस्मभ्यम् (दधत्) दधाति ॥१५ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यः समिधानोऽग्निर्देवेषु हव्या नो दधत्तममर्त्यमग्निं स्तोमेन बोधय प्रदीपय ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - यद्यग्नौ समिधः प्रक्षिप्य सुगन्ध्यादिद्रव्यं जुहुयुस्तर्ह्ययं तद्वाय्वादिषु विस्तार्य सर्वान् प्राणिनः सुखयति ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर अग्नीत समिधा घालून दिव्य व सुगंधित पदार्थांची आहुती दिली तर अग्नी त्या पदार्थांना वायूमध्ये पसरवून सर्व प्राण्यांना सुखी करतो.