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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे मैं (महे) बड़ी (देववीतये) दिव्यगुण और विद्वानों की प्राप्ति के लिये (रातिम्) देने हारे (आसवम्) सब ओर से ऐश्वर्ययुक्त (सत्पतिम्) सत्य वा नित्य विद्यमान जीव वा पदार्थों की पालना करने और (सवितारम्) समस्त संसार को उत्पन्न करने हारे जगदीश्वर की (उपह्वये) ध्यानयोग से समीप में स्तुति करूँ, वैसे तुम भी इसकी प्रशंसा करो ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। यदि मनुष्य धर्म अर्थ और काम की सिद्धि को चाहें तो परमात्मा की ही उपासना कर उस ईश्वर की आज्ञा में वर्त्तें ॥१३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(रातिम्) दाताराम् (सत्पतिम्) सतां जीवानां पदार्थानां वा पालकम् (महे) महत्यै (सवितारम्) सकलजगदुत्पादकम् (उप) (ह्वये) उपस्तुयाम् (आसवम्) समन्तादैश्वर्ययुक्तम् (देववीतये) दिव्यानां गुणानां विदुषां वा प्राप्तये ॥१३ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथाऽहं महे देववीतये रातिमासवं सत्पतिं सवितारमुपह्वये तथा यूयमप्येनं प्रशंसत ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि मनुष्या धर्मार्थकामसिद्धिं कामयेरँस्तर्हि परमात्मानमेवोपास्य तदाज्ञायां वर्त्तेरन् ॥१३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जर माणसाला धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्तीची इच्छा असेल, तर परमेश्वराची उपासना करून त्याच्या आज्ञेप्रमाणे वागावे.