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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (सवितुः) समस्त संसार के उत्पन्न करने हारे (चेततः) चेतनस्वरूप (देवस्य) स्तुति करने योग्य ईश्वर की उपासना कर (महीम्) बड़ी (सत्यराधसम्) जिससे जीव सत्य को सिद्ध करता है, उस (सुमतिम्) सुन्दर बुद्धि को (प्र, हवामहे) ग्रहण करते हैं, वैसे उस परमेश्वर की उपासना कर उस बुद्धि को तुम लोग प्राप्त होओ ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस चेतनस्वरूप जगदीश्वर ने समस्त संसार को उत्पन्न किया है, उसकी आराधना, उपासना से सत्यविद्यायुक्त उत्तम बुद्धि को तुम लोग प्राप्त हो सकते हो, किन्तु इतर जड़ पदार्थ की आराधना से कभी नहीं ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(देवस्य) स्तोतुमर्हस्य (चेततः) चेतनस्वरूपस्य (महीम्) महतीम् (प्र) (सवितुः) सर्वसंसारोत्पादकस्य (हवामहे) आदद्याम (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (सत्यराधसम्) सत्यं राध्नोति यया ताम् ॥११ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं सवितुश्चेततो देवस्येश्वरस्योपासनां कृत्वा महीं सत्यराधसं सुमतिं प्रहवामहे तथैतमुपास्यैतां यूयं प्राप्नुत ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! येन चेतनस्वरूपेण जगदीश्वरेणाखिलं जगदुत्पादितं तस्यैवाराधनेन सत्यविद्यायुक्तां प्रज्ञां यूयं प्राप्तुं शक्नुथ, नेतरस्य जडस्याराधनेन ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्या चेतनस्वरूप जगदीश्वराने संपूर्ण जग निर्माण केलेले आहे. त्याची आराधना, उपासना करण्याने सत्यविद्यायुक्त उत्तम बुद्धी तुम्ही प्राप्त करू शकता; परंतु इतर जड पदार्थांच्या आराधनेने ती कधीही प्राप्त होऊ शकत नाही.