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होता॑ यक्ष॒त्तनू॒नपा॒त्सर॑स्वती॒मवि॑र्मे॒षो न भे॑ष॒जं प॒था मधु॑मता॒ भर॑न्न॒श्विनेन्द्रा॑य वी॒र्यं᳕ बद॑रैरुप॒वाका॑भिर्भेष॒जं तोक्म॑भिः॒ पयः॒ सोमः॑ परि॒स्रुता॑ घृ॒तं मधु॒ व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑ ॥३० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। तनू॒नपा॒दिति॒ तनू॒ऽनपा॑त्। सर॑स्वतीम्। अविः॑। मे॒षः। न। भे॒ष॒जम्। प॒था। मधु॑म॒तेति॒ मधु॑ऽमता। भर॑न्। अ॒श्विना॑। इन्द्रा॑य। वी॒र्य᳕म्। बद॑रैः। उ॒प॒वाका॑भि॒रित्यु॑प॒ऽवाका॑भिः। भे॒ष॒जम्। तोक्म॑भि॒रिति॒ तोक्म॑ऽभिः। पयः॑। सोमः॑। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। घृ॒तम्। मधु॑। व्यन्तु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥३० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:30


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) हवनकर्त्ता जन ! जैसे (तनूनपात्) देह की ऊनता को पालने अर्थात् उस को किसी प्रकार पूरी करने और (होता) ग्रहण करनेवाला जन (सरस्वतीम्) बहुत ज्ञानवाली वाणी को वा (अविः) भेड़ और (मेषः) बकरा के (न) समान (मधुमता) बहुत जलयुक्त (पथा) मार्ग से (भेषजम्) औषध को (भरन्) धारण करता हुआ (इन्द्राय) ऐश्वर्य के लिए (अश्विना) सूर्य-चन्द्रमा और (वीर्यम्) पराक्रम को वा (बदरैः) बेर और (उपवाकाभिः) उपदेशरूप क्रियाओं से (भेषजम्) औषध को (यक्षत्) सङ्गत करे, वैसे जो (तोक्मभिः) सन्तानों के साथ (पयः) जल और (परिस्रुता) सब ओर से प्राप्त हुए रस के साथ (सोमः) औषधियों के समूह (घृतम्) घृत और (मधु) सहत (व्यन्तु) प्राप्त हों, उनके साथ वर्त्तमान तू (आज्यस्य) घी का (यज) हवन कर ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो सङ्गति करने हारे जन विद्या और उत्तम शिक्षायुक्त वाणी को प्राप्त हो के पथ्याहार-विहारों से पराक्रम बढ़ा और पदार्थों के ज्ञान को प्राप्त होके ऐश्वर्य को बढ़ाते हैं, वे जगत् के भूषक होते हैं ॥३० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(होता) आदाता (यक्षत्) यजेत (तनूनपात्) यस्तन्वा ऊनं पाति सः (सरस्वतीम्) बहुज्ञानवतीं वाचम् (अविः) (मेषः) (न) इव (भेषजम्) औषधम् (पथा) मार्गेण (मधुमता) बहूदकयुक्तेन (भरन्) धरन् (अश्विना) (इन्द्राय) ऐश्वर्याय (वीर्यम्) पराक्रमम् (बदरैः) बदर्या फलैः (उपवाकाभिः) उपदेशक्रियाभिः (भेषजम्) (तोक्मभिः) अपत्यैः (पयः) जलम् (सोमः) औषधिगणः (परिस्रुता) परितः स्रुता प्राप्तेन (घृतम्) (मधु) (व्यन्तु) (आज्यस्य) (होतः) हवनकर्त्तः (यज) ॥३० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतर्यथा तनूनपाद्धोता सरस्वतीमविर्मेषो न मधुमता पथा भेषजं भरन्निन्द्रायाऽश्विना वीर्यं बदरैरुपवाकाभिर्भेषजं यक्षत्तथा यानि तोक्मभिः पयः परिस्रुता सह सोमो घृतं मधु च व्यन्तु तैस्सह वर्त्तमानस्त्वमाज्यस्य यज ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये सङ्गन्तारो विद्यासुशिक्षासहितां वाचं प्राप्य पथ्याहारविहारैर्वीर्यं वर्द्धयित्वा पदार्थविज्ञानं प्राप्यैश्वर्यं वर्धयन्ति, ते जगद्भूषका भवन्ति ॥३० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक विद्या व उत्तम संस्कारित वाणीने युक्त होऊन आहार, विहार व पथ्य यांनी पराक्रमी बनून पदार्थांचे ज्ञान प्राप्त करून ऐश्वर्य वाढवितात ते जगात भूषणावह ठरतात.