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हे॒म॒न्तेन॑ऽऋ॒तुना॑ दे॒वास्त्रि॑ण॒वे म॒रुत॑ स्तु॒ताः। बले॑न॒ शक्व॑रीः॒ सहो॑ ह॒विरिन्द्रे॒ वयो॑ दधुः ॥२७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

हे॒म॒न्तेन॑। ऋ॒तुना॑। दे॒वाः। त्रि॒ण॒वे। त्रि॒न॒व इति॑ त्रिऽन॒वे। म॒रुतः॑। स्तु॒ताः। बले॑न। शक्व॑रीः। सहः॑। ह॒विः। इन्द्रे॑। वयः॑। द॒धुः॒ ॥२७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:27


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य लोगो ! जो (त्रिणवे) सत्ताईसवें व्यवहार में (हेमन्तेन) जिस में जीवों के देह बढ़ते जाते हैं, उस (ऋतुना) प्राप्त होने योग्य हेमन्त ऋतु के साथ वर्त्तते हुए (स्तुताः) प्रशंसा के योग्य (देवाः) दिव्यगुणयुक्त (मरुतः) मनुष्य (बलेन) मेघ से (शक्वरीः) शक्ति के निमित्त गौओं के (सहः) बल तथा (हविः) देने-लेने योग्य (वयः) वाञ्छित सुख को (इन्द्रे) जीवात्मा में (दधुः) धारण करें, उस का तुम सेवन करो ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग सब रसों को पकाने हारे हेमन्त ऋतु में यथायोग्य व्यवहार करते हैं, वे अत्यन्त बलवान् होते हैं ॥२७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(हेमन्तेन) वर्द्धन्ते देहा यस्मिंस्तेन (ऋतुना) (देवाः) दिव्यगुणाः (त्रिणवे) त्रिगुणा नव यस्मिंस्तस्मिन् सप्तविंशे व्यवहारे (मरुतः) मनुष्याः (स्तुताः) (बलेन) मेघेन (शक्वरीः) शक्तिनिमित्ता गाः (सहः) बलम् (हविः) (इन्द्रे) (वयः) इष्टसुखम् (दधुः) ॥२७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! ये त्रिणवे हेमन्तेनर्तुना सह वर्त्तमाना स्तुता देवा मरुतो बलेन शक्वरीः सहो हविर्वय इन्द्रे दधुस्तान् सेवध्वम् ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - ये सर्वरसपरिपाचके हेमन्ते यथायोग्यं व्यवहारं कुर्वन्ति, ते बलिष्ठा जायन्ते ॥२७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व प्रकारचा रस परिपक्व करणाऱ्या हेमंत ऋतूमध्ये जे लोक यथायोग्य रीतीने वागतात ते अत्यंत बलवान होतात.