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व॒स॒न्तेन॑ऽऋ॒तुना॑ दे॒वा वस॑वस्त्रि॒वृता॑ स्तु॒ताः। र॒थ॒न्त॒रेण॒ तेज॑सा ह॒विरिन्द्रे॒ वयो॑ दधुः ॥२३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व॒स॒न्तेन॑। ऋ॒तुना॑। दे॒वाः। वस॑वः। त्रि॒वृतेति॑ त्रि॒ऽवृता॑। स्तु॒ताः। र॒थ॒न्त॒रेणेति॑ रथम्ऽत॒रेण॑। तेज॑सा। ह॒विः। इन्द्रे॑। वयः॑। द॒धुः॒ ॥२३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:23


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (वसवः) पृथिवी आदि आठ वसु वा प्रथम कक्षावाले विद्वान् लोग (देवाः) दिव्य गुणों से युक्त (स्तुताः) स्तुति को प्राप्त हुए (त्रिवृता) तीनों कालों में विद्यमान (वसन्तेन) जिस में सुख से रहते हैं, उस प्राप्त होने योग्य वसन्त (ऋतुना) ऋतु के साथ वर्त्तमान हुए (रथन्तरेण) जहाँ रथ से तरते हैं, उस (तेजसा) तीक्ष्ण स्वरूप से (इन्द्रे) सूर्य के प्रकाश में (हविः) देने योग्य (वयः) आयु बढ़ाने हारे वस्तु को (दधुः) धारण करें, उनको स्वरूप से जानकर सङ्गति करो ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य लोग रहने के हेतु दिव्य पृथिवी आदि लोकों वा विद्वानों की वसन्त में सङ्गति करें, वे वसन्तसम्बन्धी सुख को प्राप्त होवें ॥२३।
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(वसन्तेन) वसन्ति सुखेन यस्मिंस्तेन (ऋतुना) प्राप्तव्येन (देवाः) दिव्याः (वसवः) पृथिव्यादयोऽष्टौ प्राथमकल्पिका विद्वांसो वा (त्रिवृता) यस्त्रिषु कालेषु वर्त्तते तेन (स्तुताः) प्राप्तस्तुतयः (रथन्तरेण) यत्र रथेन तरति तत्तेन (तेजसा) तीक्ष्णस्वरूपेण (हविः) दातव्यं वस्तु (इन्द्रे) सूर्य्यप्रकाशे (वयः) आयुर्वर्धकम् (दधुः) ॥२३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! ये वसवो देवा स्तुतास्त्रिवृता वसन्तेनर्तुना सह वर्त्तमाना रथन्तरेण तेजसेन्द्रे हविर्वयो दधुस्तान् स्वरूपतो विज्ञाय सङ्गच्छध्वम् ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या वासहेतून् दिव्यान् पृथिव्यादीन् विदुषो वा वसन्ते सङ्गच्छेरँस्ते वासन्तिकं सुखं प्राप्नुयुः ॥२३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे दिव्य पृथ्वी इत्यादी लोकांवर राहून वसंत ऋतूमध्ये विद्वानांची संगती धरतात. त्यांना वसंत ऋतूतील सर्व सुख प्राप्त होते.