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अ॒श्विना॑ पिबतां॒ मधु॒ सर॑स्वत्या स॒जोष॑सा। इन्द्रः॑ सु॒त्रामा॑ वृत्र॒हा जु॒षन्ता॑ सो॒म्यं मधु॑ ॥९० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒श्विना॑। पि॒ब॒ता॒म्। मधु॑। सर॑स्वत्या। स॒जोष॒सेति स॒ऽजोष॑सा। इन्द्रः॑। सु॒त्रामेति॑ सु॒ऽत्रामा॑। वृ॒त्र॒हेति॑ वृत्र॒ऽहा। जु॒षन्ता॑म्। सो॒म्यम्। मधु॑ ॥९० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:90


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (सजोषसा) समान सेवन करनेहारे (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक (सरस्वत्या) अच्छे प्रकार संस्कार पाई हुई वाणी से (मधु) मधुर आदि गुण युक्त विज्ञान को (पिबताम्) पान करें और जैसे (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् (सुत्रामा) अच्छे प्रकार रक्षा करनेहारा (वृत्रहा) सूर्य के समान वर्त्ताव वर्त्तनेवाला (सोम्यम्) सोमलता आदि ओषधिगण में हुए (मधु) मधुरादि गुण युक्त अन्न का (जुषन्ताम्) सेवन करें, वैसे तुम लोगों को भी करना चाहिये ॥९० ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापक और उपदेशक अपने जैसे सब लोगों के विद्या और सुख बढ़ाने की इच्छा करें, जिससे सब सुखी हों ॥९० ॥ इस अध्याय में राज प्रजा, धर्म के अङ्ग और अङ्गि, गृहाश्रम का व्यवहार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, सत्यव्रत, देवों के गुण, प्रजा के पालक, अभय, परस्पर सम्मति, स्त्रियों के गुण धन आदि पदार्थों की वृद्ध्यादि का वर्णन होने से इस अध्याय के अर्थ की इससे प्रथम अध्याय में कहे अर्थ के साथ सङ्गति है, ऐसा जानना चाहिये ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्याणां परमविदुषां श्रीयुतविरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण परमहंसपरिव्राजकाचार्येण श्रीमद्दयानदसरस्वतीस्वामिना निर्मिते सुप्रमाणयुक्ते संस्कृतार्य्यभाषाभ्यां विभूषिते यजुर्वेदभाष्ये विंशतितमोऽध्यायः पूर्त्तिमगात् ॥४॥ समाप्ता चेयं पूर्वविंशतिः ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (पिबताम्) (मधु) मधुरादिगुणयुक्तमन्नम् (सरस्वत्या) सुसंस्कृतया वाचा (सजोषसा) समानं जोषः सेवनं ययोस्तौ (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् (सुत्रामा) सुष्ठु रक्षकः (वृत्रहा) यो वृत्रं मेघं हन्ति स सूर्य्यस्तद्वद्वर्त्तमानः (जुषन्ताम्) सेवन्ताम् (सोम्यम्) सोमे सोमलताद्योषधिगणे भवम् (मधु) मधुरविज्ञानम् ॥९० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा सजोषसाऽश्विना सरस्वत्या मधु पिबताम्, यथा चेन्द्रः सुत्रामा वृत्रहा च सोम्यं मधु जुषन्तां तथा युष्माभिरप्यनुष्ठेयम् ॥९० ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापकोपदेशकाः स्वात्मवत्सर्वेषां विद्यासुखं वर्द्धयितुमिच्छेयुर्यतः सर्वे सुखिनः स्युः ॥९० ॥ अत्र राजप्रजाधर्माङ्गाङ्गिगृहाश्रमव्यवहारब्रह्मक्षत्रसत्यव्रतदेवगुणप्रजारक्षकाऽभयपरस्परसम्मतिस्त्रीगुण-धनादिवृद्ध्यादिवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वाध्यायोक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम् ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अध्यापक व उपदेशक यांनी स्वतःप्रमाणेच सर्व माणसांना विद्या व सुख मिळावे, अशी इच्छा बाळगावी त्यामुळे सर्वजण सुखी होतील.