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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब सामान्य उपदेश विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (चित्रभानो) चित्र-विचित्र विद्याप्रकाशोंवाले (इन्द्र) सभापति ! आप जो (इमे) ये (अण्वीभिः) अङ्गुलियों से (सुताः) सिद्ध किये (तना) विस्तारयुक्त गुण से (पूतासः) पवित्र (त्वायवः) जो तुमको मिलते हैं, उन पदार्थों को (आ, याहि) प्राप्त हूजिये ॥८७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग अच्छी क्रिया से पदार्थों को अच्छे प्रकार शुद्ध करके भोजनादि करें ॥८७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ सामान्योपदेशविषयमाह ॥
अन्वय:
(इन्द्र) सभेश (आ) (याहि) आगच्छ (चित्रभानो) चित्रा भानवो विद्याप्रकाशा यस्य तत्संबुद्धौ (सुताः) निष्पादिताः (इमे) (त्वायवः) ये त्वां युवन्ति मिलन्ति ते (अण्वीभिः) अङ्गुलीभिः (तना) विस्तृतगुणेन (पूतासः) पवित्राः ॥८७ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे चित्रभानो इन्द्र ! त्वं य इमे अण्वीभिस्सुतास्तना पूतासस्त्वायवः पदार्थाः सन्ति, तानायाहि ॥८७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्याः सत्क्रियया पदार्थान् संशोध्य भुञ्जताम् ॥८७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी पदार्थांवर चांगली प्रक्रिया करून शुद्ध करावे व नंतर भोजन करावे.