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पा॒व॒का नः॒ सर॑स्वती॒ वाजे॑भिर्वा॒जिनी॑वती। य॒ज्ञं व॑ष्टु धि॒याव॑सुः ॥८४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पा॒व॒का। नः॒। सर॑स्वती। वाजे॑भिः। वा॒जिनी॑व॒तीति॑ वा॒जिनी॑ऽवती। य॒ज्ञम्। व॒ष्टु॒। धि॒याव॑सु॒रिति॑ धि॒याऽव॑सुः ॥८४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:84


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापक और उपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पढ़ानेवाले और उपदेशक लोगो ! जैस (वाजेभिः) विज्ञान आदि गुणों से (वाजिनीवती) अच्छी उत्तम विद्या से युक्त (पावका) पवित्र करनेहारी (धियावसुः) बुद्धि के साथ जिससे धन हो वह (सरस्वती) अच्छे संस्कारवाली वाणी (नः) हमारे (यज्ञम्) यज्ञ को (वष्टु) शोभित करे, वैसे तुम लोग हम लोगों को शिक्षा करो ॥८४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि धर्मात्मा अध्यापक और उपदेशकों से विद्या और सुशिक्षा अच्छे प्रकार ग्रहण करके विज्ञान की वृद्धि सदा किया करें ॥८४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापकोपदेशकविषयमाह ॥

अन्वय:

(पावका) पवित्रकारिका (नः) अस्माकम् (सरस्वती) सुसंस्कृता वाक् (वाजेभिः) विज्ञानादिभिर्गुणैः (वाजिनीवती) प्रशस्तविद्यायुक्ता (यज्ञम्) (वष्टु) (धियावसुः) धिया वसुर्धनं यस्याः। तृतीयाया अलुक् ॥८४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापकोपदेशकौ ! यथा वाजेभिर्वाजिनीवती पावका धियावसुः सरस्वती नो यज्ञं वष्टु तथा युवामस्मान् शिक्षेताम् ॥८४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्धार्मिकाणामध्यापकोपदेशकानां सकाशात् विद्यासुशिक्षे संगृह्य विज्ञानवृद्धिर्नित्यं कार्या ॥८४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचक लुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी धर्मात्मा, अध्यापक व उपदेशक यांच्याकडून विद्या व चांगले शिक्षण प्राप्त करून विज्ञानाची वाढ करावी.