ता भि॒षजा॑ सु॒कर्म॑णा॒ सा सु॒दुघा॒ सर॑स्वती। स वृ॑त्र॒हा श॒तक्र॑तु॒रिन्द्रा॑य दधुरिन्द्रि॒यम् ॥७५ ॥
ता। भि॒षजा॑। सु॒कर्म॒णेति॑ सु॒ऽकर्म॑णा। सा। सु॒दुघेति॑ सु॒ऽदुघा॑। सर॑स्वती। सः। वृ॒त्र॒हेति॑ वृत्र॒ऽहा। श॒तक्र॑तुः। इन्द्रा॑य। द॒धुः॒। इ॒न्द्रि॒यम् ॥७५ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(ता) तौ (भिषजा) शरीरात्मरोगनिवारकौ (सुकर्मणा) सुष्ठु धर्म्यया क्रियया (सा) (सुदुघा) कामान् या सुष्ठु दोग्धि प्रपूर्त्ति सा (सरस्वती) पूर्णविद्यायुक्ता (सः) (वृत्रहा) यो वृत्रं मेघं हन्ति स सूर्यः (शतक्रतुः) अतुलप्रज्ञः (इन्द्राय) ऐश्वर्याय (दधुः) दध्यासुः (इन्द्रियम्) धनम् ॥७५ ॥