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ता भि॒षजा॑ सु॒कर्म॑णा॒ सा सु॒दुघा॒ सर॑स्वती। स वृ॑त्र॒हा श॒तक्र॑तु॒रिन्द्रा॑य दधुरिन्द्रि॒यम् ॥७५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। भि॒षजा॑। सु॒कर्म॒णेति॑ सु॒ऽकर्म॑णा। सा। सु॒दुघेति॑ सु॒ऽदुघा॑। सर॑स्वती। सः। वृ॒त्र॒हेति॑ वृत्र॒ऽहा। श॒तक्र॑तुः। इन्द्रा॑य। द॒धुः॒। इ॒न्द्रि॒यम् ॥७५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:75


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य लोगो ! जैसे (ता) वे (भिषजा) शरीर और आत्मा के रोगों के निवारण करनेहारे (सुकर्मणा) अच्छी धर्मयुक्त क्रिया से युक्त दो वैद्य (सा) वह (सुदुघा) अच्छे प्रकार इच्छा को पूरण करनेहारी (सरस्वती) पूर्ण विद्या से युक्त स्त्री और (सः) वह (वृत्रहा) जो मेघ का नाश करता है, उस सूर्य के समान (शतक्रतुः) अत्यन्त बुद्धिमान् (इन्द्राय) ऐश्वर्य्य के लिये (इन्द्रियम्) धन को (दधुः) धारण करें, वैसे तुम आचरण करो ॥७५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जगत् में जैसे विद्वान् लोग उत्तम आचरणवाले पुरुष के समान प्रयत्न करके विद्या और धन को बढ़ाते हैं, वैसे सब मनुष्य करें ॥७५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ता) तौ (भिषजा) शरीरात्मरोगनिवारकौ (सुकर्मणा) सुष्ठु धर्म्यया क्रियया (सा) (सुदुघा) कामान् या सुष्ठु दोग्धि प्रपूर्त्ति सा (सरस्वती) पूर्णविद्यायुक्ता (सः) (वृत्रहा) यो वृत्रं मेघं हन्ति स सूर्यः (शतक्रतुः) अतुलप्रज्ञः (इन्द्राय) ऐश्वर्याय (दधुः) दध्यासुः (इन्द्रियम्) धनम् ॥७५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्या ! यथा ता भिषजा सुकर्मणा सा सुदुघा सरस्वती स वृत्रहेव शतक्रतुश्चेन्द्रायेन्द्रियं दधुस्तथा यूयमप्याचरत ॥७५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अस्मिञ्जगति यथा विद्वांसः श्रेष्ठाचारिवत् प्रयत्य विद्याधने समुन्नयन्ति, तथा सर्वे मनुष्याः कुर्य्युः ॥७५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. या जगात जसे विद्वान लोक सदाचरण्ी पुरुषाप्रमाणे प्रयत्नपूर्वक विद्या व धन वाढवितात तसे सर्व माणसांनी वागावे.