बार पढ़ा गया
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) अच्छे वैद्य और (सरस्वती) अच्छी शिक्षायुक्त स्त्री (धिया) बुद्धि से (नमुचेः) नाशरहित कारण से उत्पन्न हुए कार्य से (हविः) ग्रहण करने योग्य (इन्द्रियम्) मन को (आसुरात्) मेघ से (शुक्रम्) पराक्रम और (मघम्) पूज्य (वसु) धन को (इन्द्राय) ऐश्वर्य के लिये (आजभ्रिरे) धारण करें ॥६७ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्री और पुरुषों को चाहिये कि ऐश्वर्य से सुख की प्राप्ति के लिये ओषधियों का सेवन करें ॥६७ ॥
बार पढ़ा गया
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(अश्विना) सुवैद्यौ (हविः) आदातुमर्हम् (इन्द्रियम्) मन आदि (नमुचेः) अविनश्वरात् कारणादुत्पन्नात् कार्यात् (धिया) प्रज्ञया (सरस्वती) (आ) (शुक्रम्) वीर्यम् (आसुरात्) मेघात् (वसु) (मघम्) पूज्यम् (इन्द्राय) ऐश्वर्याय (जभ्रिरे) धरेयुः ॥६७ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - अश्विना सरस्वती च धिया नमुचेर्हविरिन्द्रियमासुराच्छुक्रं मघं वस्विन्द्रायाजभ्रिरे ॥६७ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्रीपुरुषैरैश्वर्यसुखप्राप्तय औषधानि संसेव्यानि ॥६७ ॥
बार पढ़ा गया
मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - स्री-पुरुषांनी ऐश्वर्यप्राप्ती व सुखाची प्राप्ती व्हावी यासाठी औषधांचे सेवन करावे.