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सर॑स्वती॒ मन॑सा पेश॒लं वसु॒ नास॑त्याभ्यां वयति दर्श॒तं वपुः॑। रसं॑ परि॒स्रुता॒ न रोहि॑तं न॒ग्नहु॒र्धीर॒स्तस॑रं॒ न वेम॑ ॥८३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सर॑स्वती। मन॑सा। पे॒श॒लम्। वसु॑। नास॑त्याभ्याम्। व॒य॒ति॒। द॒र्श॒तम्। वपुः॑। रस॑म्। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। न। रोहि॑तम्। न॒ग्नहुः॑। धीरः॑। तस॑रम्। न। वेम॑ ॥८३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:83


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वानों के समान अन्यों को आचरण करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सरस्वती) उत्तम विज्ञानयुक्त स्त्री (मनसा) विज्ञान से (वेम) उत्पत्ति के (न) समान जिस (पेशलम्) उत्तम अङ्गों से युक्त (दर्शतम्) देखने योग्य (वपुः) शरीर वा जल को तथा (तसरम्) दुःखों के क्षय करनेहारे (रोहितम्) प्रकट हुए (परिस्रुता) सब ओर से प्राप्त (रसम्) आनन्द को देनेहारे रस के (न) समान (वसु) द्रव्य को (वयति) बनाती है, जिन (नासत्याभ्याम्) असत्य व्यवहार से रहित माता-पिता दोनों से (नग्नहुः) शुद्ध को ग्रहण करनेहारा (धीरः) ध्यानवान् तेरा पति है, उन दोनों को हम लोग प्राप्त होवें ॥८३ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे विद्वान् अध्यापक और उपदेशक सार-सार वस्तुओं का ग्रहण करते हैं, वैसे ही सब स्त्री-पुरुषों को ग्रहण करना योग्य है ॥८३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्वदितरैराचरणीयमित्याह ॥

अन्वय:

(सरस्वती) प्रशस्तं सरो विज्ञानं विद्यते यस्याः सा (मनसा) विज्ञानेन (पेशलम्) उत्तमाङ्गवत् (वसु) द्रव्यम् (नासत्याभ्याम्) न विद्यते असत्यं ययोस्ताभ्यां मातापितृभ्याम् (वयति) विस्तृणाति (दर्शतम्) दर्शनीयम् (वपुः) शरीरमुदकं वा। वपुरित्युदकनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१२) (रसम्) आनन्दम् (परिस्रुता) परितः सर्वतः स्रुतम्। अत्र सुपां सुलुग्० [अष्टा०७.१.३९] इत्याकारादेशः (न) इव (रोहितम्) प्रादुर्भूतम् (नग्नहुः) नग्नं शुद्धं जुहोति गृह्णाति सः (धीरः) ध्यानशीलः (तसरम्) तस्यत्युपक्षयति दुःखानि येन तम् (न) इव (वेम) प्रजननम् ॥८३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - सरस्वती मनसा वेम न यत् पेशलं दर्शतं वपुस्तसरं रोहितं परिस्रुता रसं न वसु वयति, नासत्याभ्यां नग्नहुर्धीरश्चाऽस्ति, तौ द्वौ वयं प्राप्नुयाम ॥८३ ॥
भावार्थभाषाः - यथा विद्वांसावध्यापकोपदेशकौ सारं सारं वस्तु गृह्णन्ति, तथैव सर्वैः स्त्रीपुरुषैर्ग्राह्यम् ॥८३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याप्रमाणे विद्वान, अध्यापक, उपदेशक वस्तूंचे मर्म जाणतात. त्याप्रमाणे सर्व स्री-पुरुषांनी वस्तूचे मर्म जाणून घ्यावे.