वांछित मन्त्र चुनें

अद्भ्यः क्षी॒रं व्य॑पिब॒त् क्रुङ्ङा॑ङ्गिर॒सो धि॒या। ऋ॒तेन॑ स॒त्यमि॑न्द्रि॒यं वि॒पान॑ꣳशु॒क्रमन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑स्येन्द्रि॒यमि॒दं पयो॒ऽमृतं॒ मधु॑ ॥७३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒द्भ्य इत्य॒त्ऽभ्यः। क्षी॒रम्। वि। अ॒पि॒ब॒त्। क्रुङ्। आ॒ङ्गि॒र॒सः। धि॒या। ऋ॒तेन॑। स॒त्यम्। इ॒न्द्रि॒यम्। वि॒पान॒मिति॑ वि॒ऽपान॑म्। शु॒क्रम्। अन्ध॑सः। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒यम्। इ॒दम्। पयः॑। अमृत॑म्। मधु॑ ॥७३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:73


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन पुरुष विज्ञान को प्राप्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (आङ्गिरसः) अङ्गिरा विद्वान् से किया हुआ विद्वान् (धिया) कर्म के साथ (अद्भ्यः) जलों से (क्षीरम्) दूध को (क्रुङ्) क्रुञ्चा पक्षी के समान थोड़ा-थोड़ा करके (व्यपिबत्) पीवे, वह (ऋतेन) यथार्थ योगाभ्यास से (इन्द्रस्य) ऐश्वर्य्ययुक्त जीव के (अन्धसः) अन्नादि के योग से (इदम्) इस प्रत्यक्ष (सत्यम्) सत्य पदार्थों में अविनाशी (विपानम्) विविध शब्दार्थ सम्बन्धयुक्त (शुक्रम्) पवित्र (इन्द्रियम्) दिव्यवाणी और (पयः) उत्तम रस (अमृतम्) रोगनाशक ओषधि (मधु) मधुरता और (इन्द्रियम्) दिव्य श्रोत्र को प्राप्त होवे ॥७३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सत्याचरणादि कर्मों करके वैद्यक शास्त्र के विधान से युक्ताहारविहार करते हैं, वे सत्य बोध और सत्य विज्ञान को प्राप्त होते हैं ॥७३ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

के जना विज्ञानमाप्नुवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(अद्भ्यः) जलेभ्यः (क्षीरम्) दुग्धम् (वि) (अपिबत्) पिबेत् (क्रुङ्) यथा पक्षी अल्पमल्पं पिबति तथा (आङ्गिरसः) अङ्गिरसो विदुषा कृतो विद्वान् (धिया) कर्मणा (ऋतेन) यथार्थेन योगाभ्यासेन (सत्यम्) अविनश्वरम् (इन्द्रियम्) दिव्यां वाचम् (विपानम्) विविधशब्दार्थसम्बन्धयुक्ताम् (शुक्रम्) पवित्राम् (अन्धसः) अन्नादियोगात् (इन्द्रस्य) परमैश्वर्ययुक्तस्य (इन्द्रियम्) दिव्यं श्रोत्रम् (इदम्) प्रत्यक्षम् (पयः) रसम् (अमृतम्) रोगनाशकम् (मधु) मधुरम् ॥७३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - य आङ्गिरसो धियाऽद्भ्यः क्षीरं क्रुङ् व्यपिबत्, स ऋतेनेन्द्रस्यान्धसः सकाशादिदं सत्यं विपानं शुक्रमिन्द्रियं पयोऽमृतं मध्विन्द्रियं च प्राप्नुयात् ॥७३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सत्याऽऽचरणैर्वैद्यकशास्त्रविधानात् युक्ताहारविहारं कुर्वन्ति, ते सत्यं बोधं विज्ञानञ्च यान्ति ॥७३ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सत्यचरण करून वैद्यकशस्रानुसार आहारविहार करतात त्यांना सत्याचा बोध होतो व सत्य विज्ञानाचे आकलन होते.