वांछित मन्त्र चुनें

ये चे॒ह पि॒तरो॒ ये च॒ नेह याँश्च॑ वि॒द्म याँ२ऽउ॑ च॒ न प्र॑वि॒द्म। त्वं वे॑त्थ॒ यति॒ ते जा॑तवेदः स्व॒धाभि॑र्य॒ज्ञꣳ सुकृ॑तं जुषस्व ॥६७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। च॒। इ॒ह। पि॒तरः॑। ये। च॒। न। इ॒ह। यान्। च॒। वि॒द्म। यान्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। च॒। न। प्र॒वि॒द्मेति॑ प्रऽवि॒द्म। त्वम्। वे॒त्थ॒। यति॑। ते। जा॒त॒वे॒द॒ इति॑ जातऽवेदः। स्व॒धाभिः॑। य॒ज्ञम्। सुकृ॑त॒मिति॒ सुऽकृ॑तम्। जु॒ष॒स्व॒ ॥६७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:67


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) नवीन तीक्ष्ण बुद्धिवाले विद्वन् ! (ये) जो (इह) यहाँ (च) ही (पितरः) पिता आदि ज्ञानी लोग हैं (च) और (ये) जो (इह) यहाँ (न) नहीं हैं (च) और हम (यान्) जिनको (विद्म) जानते (च) और (यान्) जिनको (न, प्रविद्म) नहीं जानते हैं, उन (यति) यावत् पितरों को (त्वम्) आप (वेत्थ) जानते हो (उ) और (ते) वे आप को भी जानते हैं, उनकी सेवारूप (सुकृतम्) पुण्यजनक (यज्ञम्) सत्काररूप व्यवहार को (स्वधाभिः) अन्नादि से (जुषस्व) सेवन करो ॥६७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो प्रत्यक्ष वा जो अप्रत्यक्ष विद्वान् अध्यापक और उपदेशक हैं, उन सब को बुला अन्नादि से सदा सत्कार करो, जिससे आप भी सर्वत्र सत्कारयुक्त होओ ॥६७ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ये) (च) (इह) (पितरः) (ये) (च) (न) (इह) (यान्) (च) (विद्म) जानीमः (यान्) (उ) वितर्के (च) (न) (प्रविद्म) (त्वम्) (वेत्थ) (यति) या सङ्ख्या येषान्तान् (ते) (जातवेदः) जाता वेदः प्रज्ञा यस्य तत्सम्बुद्धौ। हे विद्वन् ! (स्वधाभिः) (यज्ञम्) (सुकृतम्) सुष्ठु कर्माणि क्रियन्ते यस्मिन् (जुषस्व) सेवस्व ॥६७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जातवेदः ! ये चेह पितरो ये चेह न सन्ति, वयं यांश्च विद्म यांश्च न प्रविद्म, तान् यति यावतस्त्वं वेत्थ, उ ते त्वां विदुस्तत् सेवामयं सुकृतं यज्ञं स्वधाभिर्जुषस्व ॥६७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! ये प्रत्यक्षा वा येऽप्रत्यक्षा विद्वांसोऽध्यापका उपदेशकाश्च सन्ति, तान् सर्वानाहूयाऽन्नादिभिस्सदा सत्कुरुत, येन स्वयं सर्वत्र सत्कृता भवत ॥६७ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष विद्वान अध्यापक व उपदेशक असतात त्या सर्वांना आमंत्रण देऊन त्यांचा अन्न इत्यादींनी सत्कार करावा. त्यामुळे तुम्हीही सर्वत्र आदरास पात्र व्हाल.