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यम॑ग्ने कव्यवाहन॒ त्वं चि॒न्मन्य॑से र॒यिम्। तन्नो॑ गी॒र्भिः श्र॒वाय्यं॑ देव॒त्रा प॑नया॒ युज॑म् ॥६४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यम्। अ॒ग्ने॒। क॒व्य॒वा॒ह॒नेति॑ कव्यऽवाहन। त्वम्। चित्। मन्य॑से। र॒यिम्। तम्। नः॒। गी॒र्भिरिति॑ गीः॒ऽभिः। श्र॒वाय्य॑म्। दे॒व॒त्रेति॑ देव॒ऽत्रा। प॒न॒य॒। युज॑म् ॥६४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:64


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (कव्यवाहन) बुद्धिमानों के समीप उत्तम पदार्थ पहुँचानेहारे (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशयुक्त ! (त्वम्) आप (गीर्भिः) कोमल वाणियों से (श्रवाय्यम्) सुनाने योग्य (देवत्रा) विद्वानों में (युजम्) युक्त करने योग्य (यम्) जिस (रयिम्) ऐश्वर्य्य को (मन्यसे) जानते हो, (तम्) उसको (चित्) भी (नः) हमारे लिये (पनय) कीजिये ॥६४ ॥
भावार्थभाषाः - पिता आदि ज्ञानी लोगों को चाहिये कि पुत्रों और सत्पात्रों से प्रशंसित धन का सञ्चय करें, उस धन से उत्तम विद्वानों को ग्रहण कर, उनको सत्यधर्म के उपदेशक बनाके विद्या और धर्म का प्रचार करें और करावें ॥६४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यम्) (अग्ने) अग्निरिव प्रकाशमान विद्वन् (कव्यवाहन) यः कविषु साधूनि वस्तूनि वहति प्रापयति तत्सम्बुद्धौ (त्वम्) (चित्) अपि (मन्यसे) (रयिम्) ऐश्वर्यम् (तम्) (नः) अस्मभ्यम् (गीर्भिः) (श्रवाय्यम्) श्रावयितुमर्हम्। श्रुदक्षि० (उणा०३.९६) इत्यादिना आय्य प्रत्ययः। (देवत्रा) देवेषु विद्वत्सु (पनय) देहि। अत्र अन्येषामपि० [अष्टा०६.३.१३७] इति दीर्घः। (युजम्) योक्तुमर्हम् ॥६४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे कव्यवाहनाऽग्ने ! त्वं गीर्भिः श्रवाय्यं देवत्रा युजं यं रयिं मन्यसे तं चिन्नः पनय ॥६४ ॥
भावार्थभाषाः - पितृभिः पुत्रेभ्यस्सत्पात्रेभ्यश्च प्रशंसनीयं धनं सञ्चेयम्। तेनैतान् विदुषो गृहीत्वा सत्यधर्मोपदेशकान् कारयित्वा विद्याधर्मौ प्रचारणीयौ ॥६४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - पिता वगैरे ज्ञानी लोकांनी पुत्रांकडून व सत्पात्रांकडून धनाचा संचय करून त्या धनाने उत्तम विद्वानांना सत्य धर्माचे उपदेशक बनवून विद्या व धर्माचा प्रचार करावा व करवावा.