वांछित मन्त्र चुनें

वै॒श्व॒दे॒वी पु॑न॒ती दे॒व्यागा॒द् यस्या॑मि॒मा ब॒ह्व्य᳖स्त॒न्वो᳖ वी॒तपृ॑ष्ठाः। तया॒ मद॑न्तः सध॒मादे॑षु व॒य स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥४४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वै॒श्व॒दे॒वीति॑ वैश्वऽदे॒वी। पु॒न॒ती। दे॒वी। आ। अ॒गा॒त्। यस्या॑म्। इ॒माः। ब॒ह्व्यः᳖। त॒न्वः᳖। वी॒तपृ॑ष्ठा॒ इति॑ वी॒तऽपृ॑ष्ठाः। तया॑। मद॑न्तः। स॒ध॒मादे॒ष्विति॑ सध॒ऽमादे॑षु। व॒यम्। स्या॒म॒। पत॑यः। र॒यी॒णाम् ॥४४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:44


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा को कैसे राज्य बढ़ाना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (वैश्वदेवी) सब विदुषी स्त्रियों में उत्तम (पुनती) सब की पवित्रता करती हुई (देवी) सकल विद्या और धर्म के आचरण से प्रकाशमान विद्याओं की पढ़ानेहारी ब्रह्मचारिणी कन्या हमको (आ, अगात्) प्राप्त होवे (यस्याम्) जिसके होने में (इमाः) ये (बह्व्यः) बहुत-सी (तन्वः) विस्तृत विद्यायुक्त (वीतपृष्ठाः) विविध प्रश्नों को जाननेहारी हों (तया) उससे अच्छी शिक्षा को प्राप्त भार्य्याओं को प्राप्त होकर (वयम्) हम लोग (सधमादेषु) समान स्थानों में (मदन्तः) आनन्दयुक्त हुए (रयीणाम्) धनादि ऐश्वर्यों के (पतयः) स्वामी (स्याम) होवें ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे राजा सब कन्याओं को पढ़ाने के लिये पूर्ण विद्यावाली स्त्रियों को नियुक्त करके सब बालिकाओं को पूर्णविद्या और सुशिक्षायुक्त करे, वैसे ही बालकों को भी किया करे। जब ये सब पूर्ण युवावस्थावाले हों, तभी स्वयंवर विवाह करावे, ऐसे राज्य की वृद्धि को सदा किया करे ॥४४ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कथं राज्ञा राज्यं वर्द्धनीयमित्याह ॥

अन्वय:

(वैश्वदेवी) विश्वासां देवीनां विदुषीणां मध्य इयं विदुषी (पुनती) पवित्रतां कुर्वती (देवी) सकलविद्याधर्माचरणेन प्रकाशमाना (आ) सर्वतः (अगात्) प्राप्नुयात् (यस्याम्) (इमाः) (बह्व्यः) अनेकाः (तन्वः) विस्तृतविद्याः (वीतपृष्ठाः) विविधानि इतानि विदितानि पृष्ठानि प्रश्नानि याभिस्ताः (तया) (मदन्तः) हृष्यन्तः (सधमादेषु) सहस्थानेषु (वयम्) (स्याम) (पतयः) (रयीणाम्) धनानाम् ॥४४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! या वैश्वदेवी पुनती देव्यध्यापिका ब्रह्मचारिणी कन्यास्मानागात्, यस्यां सत्यामिमां बह्व्यस्तन्वो वीतपृष्ठाः स्युस्तया सुशिक्षिता भार्य्याः प्राप्य वयं सधमादेषु मदन्तो रयीणां पतयः स्याम ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - यथा राजा सर्वकन्याऽध्यापनाय पूर्णविद्यावतीः स्त्रीर्नियोज्य सर्वा बालिकाः पूर्णविद्यासुशिक्षायुक्ताः कुर्यात्, तथैव बालकानपि कुर्य्याद्, यदैते यौवनस्थाः स्युस्तदैव स्वयंवरं विवाहं कारयेदेवं राज्यवृद्धिं सदा कुर्य्यात् ॥४४ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाने सर्व मुलींना शिकविण्यासाठी पूर्ण विदुषी स्रियांना नियुक्त करून सर्व मुलींना पूर्ण विद्यायुक्त व सुशिक्षित करावे, तसे मुलांनाही करावे. जेव्हा त्यांना पूर्ण युवावस्था प्राप्त होईल तेव्हाच त्यांनी स्वयंवर विवाह करावा. याप्रमाणे सदैव राज्याची वृद्धी करावी.