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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को अधर्म से कैसे डरना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) सुख के देनेहारे (सवितः) सत्यकर्मों में प्रेरक जगदीश्वर आप (पवित्रेण) पवित्र वर्त्ताव (च) और (सवेन) सकलैश्वर्य्य तथा (उभाभ्याम्) विद्या और पुरुषार्थ से (विश्वतः) सब ओर से (माम्) मुझ को (पुनीहि) पवित्र कीजिये ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो ईश्वर सब मनुष्यों को शुद्धि और धर्म को ग्रहण कराता है, उसी का आश्रय करके अधर्माचरण से सदा भय किया करो ॥४३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यैरधर्मात् कथं भेत्तव्यमित्याह ॥
अन्वय:
(उभाभ्याम्) विद्यापुरुषार्थाभ्याम् (देव) सुखप्रदातः (सवितः) सत्कर्मसु प्रेरकेश्वर (पवित्रेण) शुद्धाचरणेन (सवेन) ऐश्वर्येण (च) (माम्) (पुनीहि) (विश्वतः) सर्वतः ॥४३ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे देव सवितर्जगदीश्वर ! त्वं पवित्रेण सवेन चोभाभ्यां विश्वतो मां पुनीहि ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! य ईश्वरः सर्वान् शुद्धिं धर्मं च ग्राहयति, तमाश्रित्याऽधर्माचरणात् सदा भयं कुरुत ॥४३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो ईश्वर सर्व माणसांना पवित्र करतो व धर्मात प्रवृत्त करतो त्याचाच आश्रय घेऊन अधर्माचरणाचे सदैव भय बाळगावे.