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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय का अगले मन्त्र में उपदेश किया है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) उत्पन्न हुए जनों में ज्ञानी विद्वन् ! जैसे (देवजनाः) विद्वान् जन (मनसा) विज्ञान और प्रीति से (मा) मुझ को (पुनन्तु) पवित्र करें और हमारी (धियः) बुद्धियों को (पुनन्तु) पवित्र करें और (विश्वा) सम्पूर्ण (भूतानि) भूत=प्राणिमात्र मुझ को (पुनन्तु) पवित्र करें, वैसे आप (मा) मुझ को (पुनीहि) पवित्र कीजिये ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् पुरुष और विदुषी स्त्रियों का मुख्य कर्त्तव्य यही है कि जो पुत्र और पुत्रियों को ब्रह्मचर्य और सुशिक्षा से विद्वान् और विदुषी, सुन्दर, शीलयुक्त निरन्तर किया करें ॥३९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(पुनन्तु) (मा) (देवजनाः) देवा विद्वांसश्च ते जना धर्मे प्रसिद्धाश्च (पुनन्तु) (मनसा) विज्ञानेन (धियः) बुद्धीः (पुनन्तु) (विश्वा) सर्वाणि (भूतानि) (जातवेदः) जातेषु जनेषु ज्ञानिन् विद्वन् (पुनीहि) (मा) माम् ॥३९ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे जातवेदो विद्वन् ! यथा देवजना मनसा मा पुनन्तु, मम धियश्च पुनन्तु, मम विश्वा भूतानि मा पुनन्तु, तथा त्वं मा पुनीहि ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - विदुषां विदुषीणां चेदमेव मुख्यं कृत्यमस्ति यत् पुत्राः पुत्र्यश्च ब्रह्मचर्यसुशिक्षाभ्यां विद्वांसः विदुष्यश्च सुशीलाः सततं सम्पादनीया इति ॥३९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान पुरुष व विदुषी स्रियांचे हेच मुख्य कर्तव्य आहे की, मुला-मुलींना ब्रह्मचर्य पालन व उत्तम शिक्षण देऊन विद्वान आणि विदुषी करावे व चारित्रवान बनवावे.