वांछित मन्त्र चुनें

यस्ते॒ रसः॒ सम्भृ॑त॒ऽओष॑धीषु॒ सोम॑स्य शुष्मः॒ सुर॑या सु॒तस्य॑। तेन॑ जिन्व॒ यज॑मानं॒ मदे॑न॒ सर॑स्वतीम॒श्विना॒विन्द्र॑म॒ग्निम् ॥३३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। ते॒। रसः॑। सम्भृ॑त॒ इति॒ सम्ऽभृ॑तः। ओष॑धीषु। सोम॑स्य। शुष्मः॑। सुर॑या। सु॒तस्य॑। तेन॑। जि॒न्व॒। यज॑मानम्। मदे॑न। सर॑स्वतीम्। अ॒श्विनौ॑। इन्द्र॑म्। अ॒ग्निम् ॥३३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:33


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे पुरुष धन्यवाद के योग्य हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (यः) जो (ते) आपका (ओषधीषु) सोमलतादि ओषधियों में वर्त्तमान (सुतस्य) सिद्ध किये हुए (सोमस्य) अंशुमान् आदि चौबीस प्रकार के भेदवाले सोम का (सुरया) उत्तम दानशील स्त्री ने (सम्भृतः) अच्छे प्रकार धारण किया हुआ (शुष्मः) बलकारी (रसः) रस है, (तेन) उस (मदेन) आनन्ददायक रस से (यजमानम्) सब को सुख देनेवाले यजमान (सरस्वतीम्) उत्तम विद्यायुक्त स्त्री (अश्विनौ) विद्याव्याप्त अध्यापक और उपदेशक (इन्द्रम्) ऐश्वर्ययुक्त सभा और सेना के पति (अग्निम्) पावक के समान शत्रु को जलानेहारे योद्धा को (जिन्व) प्रसन्न कीजिये ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् मनुष्य महौषधियों के सारों को आप सेवन कर अन्यों को सेवन कराके निरन्तर आनन्द बढ़ावें, वे धन्यवाद के योग्य हैं ॥३३ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

किम्भूता जना धन्या इत्याह ॥

अन्वय:

(यः) (ते) तव (रसः) आनन्दः (सम्भृतः) सम्यग्धृतः (ओषधीषु) सोमलतादिषु (सोमस्य) अशुंमदादिसंज्ञस्य चतुर्विंशतिधा भिद्यमानस्य (शुष्मः) शुष्मं बलं विद्यते यस्मिन् सः (सुरया) शोभनदानशीलया स्त्रिया (सुतस्य) निष्पादितस्य (तेन) (जिन्व) प्रीणीहि (यजमानम्) सर्वेभ्यः सुखं ददमानम् (मदेन) आनन्दप्रदेन (सरस्वतीम्) प्रशस्तविद्यायुक्तां स्त्रियम् (अश्विनौ) विद्याव्याप्तावध्यापकोपदेशकौ (इन्द्रम्) ऐश्वर्ययुक्तं सभासेनेशम् (अग्निम्) पावकवच्छत्रुदाहकं योद्धारम् ॥३३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यस्त ओषधीषु वर्त्तमानस्य सुतस्य सोमस्य सुरया सम्भृतः शुष्मो रसोऽस्ति, तेन मदेन यजमानं सरस्वतीमश्विनाविन्द्रमग्निञ्च जिन्व ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसो जना महौषधिसारं स्वयं संसेव्यान्यान् सेवयित्वा सततमानन्दं वर्द्धयेयुस्ते धन्याः सन्ति ॥३३ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान लोक महा औषधांचे सार स्वतः सेवन करतात व इतरांनाही सेवन करण्यास उद्युक्त करतात ते नेहमी आनंद वाढवित असतात आणि धन्यवादास पात्र ठरतात.