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दे॒वा य॒ज्ञम॑तन्वत भेष॒जं भि॒षजा॒श्विना॑। वा॒चा सर॑स्वती भि॒षगिन्द्रा॑येन्द्रि॒याणि॒ दध॑तः ॥१२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वाः। य॒ज्ञम्। अ॒त॒न्व॒त॒। भे॒ष॒जम्। भि॒षजा॑। अ॒श्विना॑। वा॒चा। सर॑स्वती। भि॒षक्। इन्द्रा॑य। इ॒न्द्रि॒याणि॑। दध॑तः ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

माता-पिता और सन्तान परस्पर कैसे वर्त्तें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (इन्द्रियाणि) उत्तम प्रकार विषयग्राहक नेत्र आदि इन्दियों वा धनों को (दधतः) धारण करते हुए (भिषक्) चिकित्सा आदि वैद्यकशास्त्र के अङ्गों को जाननेहारी (सरस्वती) प्रशस्त वैद्यकशास्त्र के ज्ञान से युक्त विदुषी स्त्री और (भिषजा) आयुर्वेद के जाननेहारी (अश्विना) ओषधिविद्या में व्याप्तबुद्धिवाले दो उत्तम विद्वान् वैद्य ये तीनों और (देवाः) उत्तम ज्ञानीजन (वाचा) वाणी से (इन्द्राय) परमैश्वर्य्य के लिये (भेषजम्) रोगविनाशक औषधरूप (यज्ञम्) सुख देनेवाले यज्ञ को (अतन्वत) विस्तृत करें, वैसे ही तुम लोग भी करो ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - जब तक मनुष्य लोग पथ्य ओषधि और ब्रह्मचर्य के सेवन से शरीर के आरोग्य, बल और बुद्धि को नहीं बढ़ाते, तब तक सब सुखों के प्राप्त होने को समर्थ नहीं होते ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मातापित्रपत्यानि परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

(देवाः) विद्वांसः (यज्ञम्) सुखप्रदम् (अतन्वत) विस्तृतं कुरुत (भेषजम्) रोगप्रणाशकमौषधरूपम् (भिषजा) आयुर्वेदविदौ (अश्विनौ) आयुर्वेदाङ्गव्यापिनौ (वाचा) तदानुकूल्यया वाण्या (सरस्वती) सरः प्रशस्त आयुर्वेदबोधो विद्यते यस्याः सा (भिषक्) चिकित्साद्यङ्गवित् (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (इन्द्रियाणि) चक्षुरादीनि धनानि वा (दधतः) ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथेन्द्रियाणि दधतो भिषक् सरस्वती भिषजाऽश्विना च देवा वाचेन्द्राय भेषजं यज्ञमतन्वत, तथैव यूयं कुरुत ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - यावन्मनुष्याः पथ्यौषधिब्रह्मचर्य्यसेवनेन शरीरारोग्यबलबुद्धीर्न वर्द्धयन्ते, तावत् सर्वाणि सुखानि प्राप्तुं न शक्नुवन्ति ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जोपर्यंत माणसे पथ्य, औषध व ब्रह्मचर्याचे सेवन करून शरीराचे आरोग्य, बल व बुद्धीची वाढ करीत नाहीत तोपर्यंत ती सर्व सुख प्राप्त करण्यास समर्थ ठरू शकत नाहीत.