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या व्या॒घ्रं विषू॑चिको॒भौ वृकं॑ च॒ रक्ष॑ति। श्ये॒नं प॑त॒त्रिण॑ꣳ सि॒ꣳहꣳ सेमं पा॒त्वꣳह॑सः ॥१० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या। व्या॒घ्रम्। विषू॑चिका। उ॒भौ। वृक॑म्। च॒। रक्ष॑ति। श्ये॒नम्। प॒त॒त्रिण॑म्। सि॒ꣳहम्। सा। इ॒मम्। पा॒तु॒। अꣳह॑सः ॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:10


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर स्त्री-पुरुष कैसे वर्त्तें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो (विषूचिका) विविध अर्थों की सूचना करनेहारी राजा की राणी (व्याघ्रम्) जो कूद के मारता है उस बाघ और (वृकम्) बकरे आदि को मारनेहारा भेड़िया (उभौ) इन दिनों को (पतत्रिणम्) शीघ्र चलने के लिये बहुवेगवाले और (श्येनम्) शीघ्र धावन करके अन्य पक्षियों को मारनेहारे पक्षी (च) और (सिंहम्) हस्ति आदि को भी मारनेवाले दुष्ट पशु को मार के प्रजा को (रक्षति) रक्षा करती है (सा) सो राणी (इमम्) इस राजा को (अंहसः) अपराध से (पातु) रक्षा करे ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - जैसे शूरवीर राजा स्वयं व्याघ्रादि को मारने, न्याय से प्रजा की रक्षा करने और अपनी स्त्री को प्रसन्न करने को समर्थ होता है, वैसे ही राजा की राणी भी होवे। जैसे अच्छे प्रिय आचरण से राणी अपने पति राजा को प्रमाद से पृथक् करके प्रसन्न करती है, वैसे राजा भी अपनी स्त्री को सदा प्रसन्न करे ॥१० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स्त्रीपुरुषौ कथं वर्त्तेयातामित्याह ॥

अन्वय:

(या) विदुषी स्त्री (व्याघ्रम्) यो विशेषेणाजिघ्रति तम् (विषूचिका) या विविधानर्थान् सूचयति सा (उभौ) (वृकम्) अजादीनां हन्तारम् (च) (रक्षति) (श्येनम्) यः शीघ्रं धावित्वान्यान् पक्षिणो हन्ति तम् (पतत्रिणम्) पतत्रः शीघ्रं गन्तुं बहुवेगो यस्यास्ति तम् (सिंहम्) यो हस्त्यादीनपि हिनस्ति तम् (सा) (इमम्) (पातु) रक्षतु (अंहसः) मिथ्याचारात् ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - या विषूचिका व्याघ्रं वृकमुभौ पतत्रिणं श्येनं सिहं च दत्त्वा प्रजां रक्षति, सेमं राजानमंहसः पातु ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - यथा शूरवीरो राजा स्वयं व्याघ्रादिकं हन्तुं न्यायेन प्रजां रक्षितुं स्वस्त्रियं प्रसादयितुं च शक्नोति, तथैव राज्ञी भवेत्। यथा सुप्रियाचारेण राज्ञी स्वपतिं प्रमादात् पृथक्कृत्य प्रसादयति, तथैव राजापि तां सदा प्रसादयेत् ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - शूर वीर राजा जसा स्वतः वाघ इत्यादी पशूंना मारून प्रजेचे रक्षण करतो. आपल्या शूरपणाने पत्नीला प्रसन्न करतो, तसेच राजाच्या राणीनेही प्रसन्नतेने वागावे. आपल्या प्रेमळ वर्तनाने पतीला तिने प्रमादापासून दूर ठेवावे व प्रसन्न करावे, तसेच राजानेही आपल्या पत्नीला सदैव प्रसन्न ठेवावे.