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अ॒श्याम॒ तं काम॑मग्ने॒ तवो॒तीऽअ॒श्याम॑ र॒यिꣳ र॑यिवः सु॒वीर॑म्। अ॒श्याम॒ वाज॑म॒भि वा॒ज॑यन्तो॒ऽश्याम॑ द्यु॒म्नम॑जरा॒जरं॑ ते ॥७४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒श्याम॑। तम्। काम॑म्। अ॒ग्ने॒। तव॑। ऊ॒ती। अ॒श्याम॑। र॒यिम्। र॒यि॒व॒ इति॑ रयिऽवः। सु॒वीर॒मिति॑ सु॒ऽवी॑रम्। अ॒श्याम॑। वाज॑म्। अ॒भि। वा॒जय॑न्तः। अ॒श्याम॑। द्यु॒म्न॑म्। अ॒ज॒र॒। अ॒जर॑म्। ते॒ ॥७४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:74


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रजा और राजपुरुषों को परस्पर क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) युद्धविद्या के जाननेहारे सेनापति ! हम लोग (तव) तेरी (ऊती) रक्षा आदि की विद्या से (तम्) उस (कामम्) कामना को (अश्याम) प्राप्त हों। हे (रयिवः) प्रशस्त धनयुक्त ! (सुवीरम्) अच्छे वीर प्राप्त होते हैं, जिससे उस (रयिम्) धन को (अश्याम) प्राप्त हों, (वाजयन्तः) सङ्ग्राम करते-कराते हुए हम लोग (वाजम्) सङ्ग्राम में विजय को (अभ्यश्याम) अच्छे प्रकार प्राप्त हों। हे (अजर) वृद्धपन से रहित सेनापते ! हम लोग (ते) तेरे प्रताप से (अजरम्) अक्षय (द्युम्नम्) धन और कीर्ति को (अश्याम) प्राप्त हों ॥७४ ॥
भावार्थभाषाः - प्रजा के मनुष्यों को योग्य है कि राजपुरुषों की रक्षा से और राजपुरुष प्रजाजन की रक्षा से परस्पर सब इष्ट कामों को प्राप्त हों ॥७४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रजाराजजनैरितरेतरं किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अश्याम) प्राप्नुयाम (तम्) (कामम्) (अग्ने) युद्धविद्यावित्सेनेश (तव) (ऊती) रक्षाद्यया क्रियया। अत्र सुपां सुलग्० [अष्टा०७.१.३९] इति पूर्वसवर्णः (अश्याम) (रयिम्) राज्यश्रियम् (रयिवः) प्रशस्ता रययो विद्यन्ते यस्य तत्सबुद्धौ। अत्र छन्दसीरः [अष्टा०८.२.१५] इति मस्य वः (सुवीरम्) शोभना वीराः प्राप्यन्ते यस्मात् तम् (अश्याम) (वाजम्) सङ्ग्रामविजयम् (अभि) (वाजयन्तः) सङ्ग्रामयन्तो योधयन्तः (अश्याम) (द्युम्नम्) यशो धनं वा (अजर) जरादोषरहित (अजरम्) जरादोषरहितम् (ते) तव ॥७४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! वयं तवोती तं काममश्याम। हे रयिवः ! सुवीरं रयिमश्याम, वाजयन्तो वयं वाजमभ्यश्याम। हे अजर ! तेऽजरं द्युम्नमश्याम ॥७४ ॥
भावार्थभाषाः - प्रजास्थैर्मनुष्यै राजपुरुषरक्षया राजपुरुषैः प्रजाजनरक्षणेन च परस्परं सर्वे कामाः प्राप्तव्याः ॥७४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - प्रजाजनांनी राजपुरुषांचे रक्षन करून व राजपुरुषांनी प्रजेचे रक्षण करून परस्पर इष्ट कार्य (अक्षय धन व कीर्ती) पूर्ण करावे.