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पृ॒ष्टो दि॒वि पृ॒ष्टोऽअ॒ग्निः पृ॑थि॒व्यां पृ॒ष्टो विश्वा॒ऽओष॑धी॒रावि॑वेश। वै॒श्वा॒न॒रः सह॑सा पृ॒ष्टोऽअ॒ग्निः स नो॒ दिवा॒ स रि॒षस्पा॑तु॒ नक्त॑म् ॥७३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पृ॒ष्टः। दि॒वि। पृ॒ष्टः। अ॒ग्निः। पृ॒थि॒व्याम्। पृ॒ष्टः। विश्वाः॑। ओष॑धीः। आ। वि॒वे॒श॒। वै॒श्वा॒न॒रः। सह॑सा। पृ॒ष्टः। अ॒ग्निः। सः। नः॒। दिवा॑। सः। रि॒षः। पा॒तु॒। नक्त॑म् ॥७३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:73


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्यों से कि जो (दिवि) प्रकाशस्वरूप सूर्य (पृष्टः) जानने के योग्य (अग्निः) अग्नि (पृथिव्याम्) पृथिवी में (पृष्टः) जानने को इष्ट अग्नि तथा जल और वायु में (पृष्टः) जानने के योग्य पावक (सहसा) बलादि गुणों से युक्त (वैश्वानरः) विश्व में प्रकाशमान (पृष्टः) जानने के योग्य (अग्निः) बिजुली रूप अग्नि (विश्वाः) समग्र (ओषधीः) ओषधियों में (आ, विवेश) प्रविष्ट हो रहा है (सः) सो अग्नि (दिवा) दिन और (सः) वह अग्नि (नक्तम्) रात्रि में जैसे रक्षा करता, वैसे सेना के पति आप (नः) हमको (रिषः) हिंसक जन से निरन्तर (पातु) रक्षा करें ॥७३ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य आकाशस्थ सूर्य और पृथिवी में प्रकाशमान सब पदार्थों में व्यापक विद्युद्रूप अग्नि को विद्वानों से निश्चय कर कार्यों में संयुक्त करते हैं, वे शत्रुओं से निर्भय होते हैं ॥७३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(पृष्टः) ज्ञातुमिष्टः (दिवि) सूर्ये (पृष्टः) (अग्निः) प्रसिद्धः पावकः (पृथिव्याम्) (पृष्टः) (विश्वाः) अखिलाः (ओषधीः) सोमयवाद्याः (आ) (विवेश) विष्टोऽस्ति (वैश्वानरः) विश्वस्य नेता स एव (सहसा) बलेन (पृष्टः) (अग्निः) विद्युत् (सः) (नः) अस्मान् (दिवा) दिवसे (सः) (रिषः) हिंसकात् (पातु) रक्षतु (नक्तम्) रात्रौ ॥७३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्यैर्यो दिवि पृष्टोऽग्निः पृथिव्यां पृष्टोऽग्निर्जले वायौ च पृष्टोऽग्निः सहसा वैश्वानरः पृष्टोऽग्निर्विश्वा ओषधीराविवेश, स दिवा स च नक्तं यथा पाति, तथा सेनेशो भवान्नोऽस्मान् रिषः सततं पातु ॥७३ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या आकाशस्थं सूर्यं पृथिवीस्थं ज्वलितं सर्वपदार्थव्यापिनं विद्युदग्निं च विद्वद्भ्यो निश्चित्य कार्येषु संयुञ्जते, ते शत्रुभ्यो निर्भया जायन्ते ॥७३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे आकाशातील सूर्य व पृथ्वीवरील सर्व पदार्थांत व्यापक असलेल्या विद्युतरूपी अग्नीला कार्यात युक्त करतात, ती शत्रूंपासून निर्भय होतात.