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य॒न्ता च॑ मे ध॒र्त्ता च॑ मे॒ क्षेम॑श्च मे॒ धृति॑श्च मे॒ विश्वं॑ च मे॒ मह॑श्च मे सं॒विच्च॑ मे॒ ज्ञात्रं॑ च मे॒ सूश्च॑ मे प्र॒सूश्च॑ मे॒ सीरं॑ च मे॒ लय॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य॒न्ता। च॒। मे॒। ध॒र्त्ता। च॒। मे॒। क्षेमः॑। च॒। मे॒। धृतिः॑। च॒। मे॒। विश्व॑म्। च॒। मे॒। महः॑। च॒। मे॒। सं॒विदिति॑ स॒म्ऽवित्। च॒। मे॒। ज्ञात्र॑म्। च॒। मे॒। सूः। च॒। मे॒। प्र॒सूरिति॑ प्र॒ऽसूः। च॒। मे॒। सीर॑म्। च॒। मे॒। लयः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:7


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (यन्ता) नियम करनेवाला (च) और नियमित पदार्थ (मे) मेरा (धर्त्ता) धारण करनेवाला (च) और धारण किया हुआ पदार्थ (मे) मेरी (क्षेमः) रक्षा (च) और रक्षा करनेवाला (मे) मेरी (धृतिः) धारणा (च) और सहनशीलता (मे) मेरे सम्बन्ध का (विश्वम्) जगत् (च) और उसके अनुकूल मर्यादा (मे) मेरा (महः) बड़ा कर्म (च) और बड़ा व्यवहार (मे) मेरी (संवित्) प्रतिज्ञा (च) और जाना हुआ विषय (मे) मेरा (ज्ञात्रम्) जिससे जानता हूँ, वह ज्ञान (च) और जानने योग्य पदार्थ (मे) मेरी (सूः) प्रेरणा करनेवाली चित्त की वृत्ति (च) और उत्पन्न हुआ पदार्थ (मे) मेरी (प्रसूः) जो उत्पत्ति करानेवाली वृत्ति (च) और उत्पत्ति का विषय (मे) मेरे (सीरम्) खेती की सिद्धि करानेवाले हल आदि (च) और खेती करनेवाले तथा (मे) मेरा (लयः) लय अर्थात् जिसमें एकता को प्राप्त होना हो, वह विषय (च) और जो मुझ में एकता को प्राप्त हुआ, वह विद्यादि गुण, ये उक्त सब (यज्ञेन) अच्छे नियमों के आचरण से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - जो शम, दम आदि गुणों से युक्त अच्छे-अच्छे नियमों को भलीभाँति पालन करें, वे अपने चाहे हुए कामों को सिद्ध करावें ॥७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यन्ता) नियमकर्त्ता (च) नियतः (मे) (धर्त्ता) धारकः (च) धृतः (मे) (क्षेमः) रक्षणम् (च) रक्षकः (मे) (धृतिः) धरन्ति यया सा (च) क्षमा (मे) (विश्वम्) अखिलं जगत् (च) एतदनुकूला क्रिया (मे) (महः) महत् (च) महान् (मे) (संवित्) प्रतिज्ञा (च) विज्ञातम् (मे) (ज्ञात्रम्) जानामि येन (च) ज्ञातव्यम् (मे) (सूः) या सुवति प्रेरयति सा (च) उत्पन्नम् (मे) (प्रसूः) या प्रसूतम्, उत्पादयति सा (च) प्रसवः (मे) (सीरम्) कृषिसाधकं हलादिकम् (च) कृषीवलाः (मे) (लयः) लीयन्ते यस्मिन् सः (च) लीनम् (मे) (यज्ञेन) सुनियमानुष्ठानाख्येन (कल्पन्ताम्) ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे यन्ता च मे धर्त्ता च मे क्षेमश्च मे धृतिश्च मे विश्वं च मे महश्च मे संविच्च मे ज्ञात्रं च मे सूश्च मे प्रसूश्च मे सीरं च मे लयश्च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - ये शमदमादिगुणान्विताः सुनियमान् पालयेयुस्ते स्वाभीष्टानि साधयेयुः ॥७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे शम, दम इत्यादी गुणांनी युक्त होऊन चांगल्या नियमांचे योग्यप्रकारे पालन करतात. ते आपले इच्छित कार्य सिद्ध करू शकतात.