ऋचो॒ नामा॑स्मि॒ यजू॑षि॒ नामा॑स्मि॒ सामा॑नि॒ नामा॑स्मि। येऽअ॒ग्नयः॒ पाञ्च॑जन्याऽअ॒स्यां पृ॑थि॒व्यामधि॑। तेषा॑मसि॒ त्वमु॑त्त॒मः प्र नो॑ जी॒वात॑वे सुव ॥६७ ॥
ऋचः॑। नाम॑। अ॒स्मि॒। यजू॑षि। नाम॑। अ॒स्मि॒। सामा॑नि। नाम॑। अ॒स्मि॒। ये॒। अ॒ग्नयः॑। पाञ्च॑जन्या॒ इति॒ पाञ्च॑जन्याः। अ॒स्याम्। पृ॒थि॒व्याम्। अधि॑। तेषा॑म्। अ॒सि॒। त्वम्। उ॒त्त॒म इत्यु॑त्ऽत॒मः। प्र। नः॒। जी॒वात॑वे। सु॒व॒ ॥६७ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब ऋग्वेद आदि को पढ़के क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथर्गादिवेदाध्ययनेन किं कार्यमित्युपदिश्यते ॥
(ऋचः) ऋग्वेदश्रुतयः (नाम) प्रसिद्धौ (अस्मि) भवामि (यजूंषि) यजुर्मन्त्राः (नाम) (अस्मि) (सामानि) सामवेदमन्त्रगानानि (नाम) (अस्मि) (ये) (अग्नयः) आहवनीयादयः पावकाः (पाञ्चजन्याः) पञ्चजनेभ्यो हिताः। पञ्चजना इति मनुष्यनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.३) (अस्याम्) (पृथिव्याम्) (अधि) उपरि (तेषाम्) (असि) (त्वम्) (उत्तमः) (प्र) (नः) अस्माकम् (जीवातवे) जीवनाय (सुव) प्रेरय ॥६७ ॥