वांछित मन्त्र चुनें

स॒त्यं च॑ मे श्र॒द्धा च॑ मे॒ जग॑च्च मे॒ धनं॑ च मे॒ विश्वं॑ च मे॒ मह॑श्च मे क्री॒डा च॑ मे॒ मोद॑श्च मे जा॒तं च॑ मे जनि॒ष्यमा॑णं च मे सू॒क्तं च॑ मे सुकृ॒तं च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒त्यम्। च॒। मे॒। श्र॒द्धा। च॒। मे॒। जग॑त्। च॒। मे॒। धन॑म्। च॒। मे॒। विश्व॑म्। च॒। मे॒। महः॑। च॒। मे॒। क्री॒डा। च॒। मे॒। मोदः॑। च॒। मे॒। जा॒तम्। च॒। मे॒। ज॒नि॒ष्यमा॑णम्। च॒। मे॒। सू॒क्तमिति॑ सुऽउ॒क्तम्। च॒। मे॒। सु॒कृ॒तमिति॑ सुऽकृ॒तम्। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (सत्यम्) यथार्थ विषय (च) और सब का हित करना (मे) मेरी (श्रद्धा) अर्थात् जिससे सत्य को धारण करते हैं (च) और उक्त श्रद्धा की सिद्धि देनेवाले पदार्थ (मे) मेरा (जगत्) चेतन सन्तान आदि वर्ग (च) और उस में स्थिर हुए पदार्थ (मे) मेरा (धनम्) सुवर्ण आदि धन (च) और धान्य अर्थात् अनाज आदि (मे) मेरा (विश्वम्) सर्वस्व (च) और सबों पर उपकार (मे) मेरी (महः) बड़ाई से भरी हुई प्रशंसा करने योग्य वस्तु (च) और सत्कार (मे) मेरा (क्रीडा) खेलना विहार (च) और उसके पदार्थ (मे) मेरा (मोदः) हर्ष (च) और अति हर्ष (मे) मेरा (जातम्) उत्पन्न हुआ पदार्थ (च) तथा जो होता है (मे) मेरा (जनिष्यमाणम्) जो उत्पन्न होनेवाला (च) और जितना उससे सम्बन्ध रखनेवाला (मे) मेरा (सूक्तम्) अच्छे प्रकार कहा हुआ (च) और अच्छे प्रकार विचारा हुआ (मे) मेरा (सुकृतम्) उत्तमता से किया हुआ काम (च) और उसके साधन ये उक्त सब पदार्थ (यज्ञेन) सत्य और धर्म की उन्नति करने रूप उपदेश से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्या का पठन-पाठन, श्रवण और उपदेश करते वा कराते हैं, वे नित्य उन्नति को प्राप्त होते हैं ॥५ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(सत्यम्) यथार्थम् (च) सर्वहितम् (मे) (श्रद्धा) श्रत् सत्यं दधाति यया सा। श्रदिति सत्यनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.१०) (च) एतत्साधनानि (मे) (जगत्) यद् गच्छति तत् (च) एतत्स्थाः सर्वे पदार्थाः (मे) (धनम्) सुवर्णादिकम् (च) धान्यम् (मे) (विश्वम्) सर्वम् (च) अखिलोपकरणम् (मे) (महः) महत्त्वयुक्तं पूज्यं वस्तु (च) सत्कारः (मे) (क्रीडा) विहारः (च) एतत्साधनम् (मे) (मोदः) हर्षः (च) परमानन्दः (मे) (जातम्) यावदुत्पन्नम् (च) यावदुत्पद्यते तावत् (मे) (जनिष्यमाणम्) उत्पत्स्यमानम् (च) यावत्तत्सम्बन्धि (मे) (सूक्तम्) सुष्ठु कथितम् (च) सुविचारितम् (मे) (सुकृतम्) पुण्यात्मकं सुष्ठु निष्पादितं कर्म (च) एतत्साधनानि (मे) (यज्ञेन) सत्यधर्मोन्नतिकरणेनोपदेशाख्येन (कल्पन्ताम्) ॥५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे सत्यं च मे श्रद्धा च मे जगच्च मे धनञ्च मे विश्वं च मे महश्च मे क्रीडा च मे मोदश्च मे जातञ्च मे जनिष्यमाणं च मे सूक्तं च मे सुकृतं च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्याध्ययनाध्यापनश्रवणोपदेशान् कुर्वन्ति कारयन्ति च ते नित्यमुन्नता जायन्ते ॥५ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्येचे अध्ययन-अध्यापन, श्रवण व उपदेश करतात किंवा करवितात त्यांची (धन, धान्य, संतती व अनेक बाबतीत) सदैव उन्नती होते.