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तत्त्वा॑ यामि॒ ब्रह्म॑णा॒ वन्द॑मान॒स्तदा शा॑स्ते॒ यज॑मानो ह॒विर्भिः॑। अहे॑डमानो वरुणे॒ह बो॒ध्युरु॑शꣳस॒ मा न॒ऽआयुः॒ प्रमो॑षीः ॥४९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। त्वा॒। या॒मि। ब्रह्म॑णा। वन्द॑मानः। तत्। आ। शा॒स्ते॒। यज॑मानः। ह॒विर्भि॒रिति ह॒विःऽभिः॑। अहे॑डमानः। व॒रु॒ण॒। इ॒ह। बो॒धि॒। उरु॑श॒ꣳसेत्युरु॑ऽशꣳस। मा। नः॒। आयुः॑। प्र। मो॒षीः॒ ॥४९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:49


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को विद्वानों के तुल्य आचरण करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (उरुशंस) बहुतों की प्रशंसा करनेहारे (वरुण) श्रेष्ठ विद्वन् ! (ब्रह्मणा) वेद से (वन्दमानः) स्तुति करता हुआ (यजमानः) यज्ञ करनेवाला (अहेडमानः) सत्कार को प्राप्त हुआ पुरुष (हविर्भिः) होम करने के योग्य अच्छे बनाये हुए पदार्थों से जो (आ, शास्ते) आशा करते हैं, (तत्) उसको मैं (यामि) प्राप्त होऊँ तथा जिस उत्तम (आयुः) सौ वर्ष की आयुर्दा को (त्वा) तेरा आश्रय करके मैं प्राप्त होऊँ (तत्) उस को तू भी प्राप्त हो, तू (इह) इस संसार में उक्त आयुर्दा को (बोधि) जान और तू (नः) हमारी उस आयुर्दा को (मा, प्र, मोषीः) मत चोर ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - सत्यवादी, शास्त्रवेत्ता, सज्जन, विद्वान् जो चाहे वही चाहना मनुष्यों को भी करनी चाहिये। किसी को किन्हीं विद्वानों का अनादर न करना चाहिये तथा स्त्री पुरुषों को ब्रह्मचर्यत्याग, अयोग्य आहार-विहार, व्यभिचार, अत्यन्त विषयासक्ति आदि खोटे कामों से आयुर्दा का नाश कभी न करना चाहिये ॥४९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैर्विद्वद्वदाचरणीयमित्याह ॥

अन्वय:

(तत्) (त्वा) (यामि) प्राप्नोमि (ब्रह्मणा) वेदेन (वन्दमानः) स्तुवन सन् (तत्) प्रेम (आ) (शास्ते) इच्छति (यजमानः) यो यजते सः (हविर्भिः) होतुमर्हैः संस्कृतैर्द्रव्यैः (अहेडमानः) सत्कृतः (वरुण) वर (इह) (बोधि) बुध्यस्व (उरुशंस) य उरून् बहून शंसति तत्सम्बुद्धौ (मा) निषेधे (नः) अस्मान् (आयुः) (प्र) (मोषीः) चोरयेः ॥४९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे उरुशंस वरुण ! ब्रह्मणा वन्दमानो यजमानोऽहेडमानो हविर्भिर्यदाशास्ते, तदहं यामि यदुत्तममायुस्त्वाश्रित्याहं यामि, तत्त्वमपि प्राप्नुहि, त्वमिह तद् बोधि त्वं नोऽस्माकं तदायुर्मा प्रमोषीः ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - आप्ता विद्वांसो यदिच्छेयुस्तदेव मनुष्यैरेषितव्यम्, न केनापि केषाञ्चिद् विदुषामनादरः कार्यः। न खलु स्त्रीपुरुषैरब्रह्मचर्य्यायुक्ताहारविहारव्यभिचारातिविषयासक्त्यादिभिरायुः कदापि ह्रसनीयम् ॥४९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सत्यवादी शास्रवेत्ते, सज्जम, विद्वान लोक जशी कामना करतात तशा प्रकारच्या कामना माणसांनी कराव्यात. कोणीही कोणत्याही विद्वानांचा अनादर करू नये व स्री-पुरुषांनी ब्रह्मचर्याचा त्याग, अयोगय आहार-विहार, व्यभिचार, अत्यंत, विषयासक्ती इत्यादी खोट्या कर्माने आयुष्याचा नाश कधीही करू नये.