वि॒त्तं च॑ मे॒ वेद्यं॑ च मे भू॒तं च॑ मे भवि॒ष्यच्च॑ मे सु॒गं च॑ मे सुप॒थ्यं᳖ च मऽऋ॒द्धं च॑ म॒ऽऋद्धि॑श्च म क्लृ॒प्तं च॑ मे॒ क्लृप्ति॑श्च मे मति॒श्च मे सुम॒तिश्च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥११ ॥
वि॒त्तम्। च॒। मे॒। वेद्य॑म्। च॒। मे॒। भू॒तम्। च॒। मे॒। भ॒वि॒ष्यत्। च॒। मे॒। सु॒गमिति॑ सु॒ऽगम्। च॒। मे॒। सु॒प॒थ्य᳖मिति॑ सुप॒थ्य᳖म्। च॒। मे॒। ऋ॒द्धम्। च॒। मे॒। ऋद्धिः॑। च॒। मे॒। क्लृ॒प्तम्। च॒। मे॒। क्लृप्तिः॑। च॒। मे॒। म॒तिः। च॒। मे॒। सु॒म॒तिरिति॑ सुऽम॒तिः। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥११ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(वित्तम्) विचारितम् (च) विचारः (मे) (वेद्यम्) विचार्य्यम् (च) विचारकर्त्ता (मे) (भूतम्) अतीतम् (च) वर्त्तमानम् (मे) (भविष्यत्) आगामि (च) सर्वसामयिकम् (मे) (सुगम्) सुष्ठु गच्छन्ति यस्मिँस्तत् (च) उचितं कर्म (मे) (सुपथ्यम्) शोभनस्य पथो भावम् (च) निदानम् (मे) (ऋद्धम्) समृद्धम् (च) सिद्धयः (मे) (ऋद्धिः) योगेन प्राप्ता समृद्धिः (च) तुष्टयः (मे) (क्लृप्तम्) समर्थितम् (च) कल्पना (मे) (क्लृप्तिः) समर्थोहा (च) तर्कः (मे) (मतिः) मननम् (च) विवेचनम् (मे) (सुमतिः) शोभना प्रज्ञा (च) उत्तमा निष्ठा (मे) (यज्ञेन) शमदमादियुक्तेन योगाभ्यासेन (कल्पन्ताम्) ॥११ ॥