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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर विद्वान् कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - जो पुरुष (ईदृङ्) इसके तुल्य (च) भी (अन्यादृङ्) और के समान (च) भी (सदृङ्) समान देखनेवाला (च) भी (प्रतिसदृङ्) उस उसके प्रति सदृश देखनेवाला (च) भी (मितः) मान को प्राप्त (च) भी (सम्मितः) अच्छे प्रकार परिणाम किया गया (च) और जो (सभराः) समान धारणा को करनेवाले वर्त्तमान हैं, वे व्यवहारसम्बन्धी कार्य्यसिद्धि कर सकते हैं ॥८१ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ईश्वर के तुल्य उत्तम और ईश्वर के समान काम को करके सत्य को धारण करता और असत्य का त्याग करता है, वही योग्य है ॥८१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्विद्वान् कीदृशो भवेदित्याह ॥
अन्वय:
(ईदृङ्) अनेन तुल्यः (च) (अन्यादृङ्) अन्येन समानः (च) (सदृङ्) समानं पश्यति स सदृङ् (च) (प्रतिसदृङ्) तं तं प्रति सदृशं पश्यति (च) (मितः) मानं प्राप्तः (च) (सम्मितः) सम्यक् परिमितः (च) (सभराः) समानं बिभ्रतीति सभराः ॥८१ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - ये पुरुषा ईदृङ् चान्यादृङ् च सदृङ् च प्रतिसदृङ् च मितश्च सम्मितश्च सभराश्च वर्त्तन्ते, ते व्यावहारिकीं कार्यसिद्धिं कर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥८१ ॥
भावार्थभाषाः - यो मनुष्य ईश्वरतुल्य उत्तमस्तदनुकरणं कृत्वा सत्यं धरत्यसत्यं त्यजति, स एव योग्योऽस्ति ॥८१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो माणूस (ईश्वराप्रमाणे) उत्तम असून तसेच काम करतो व सत्याला धारण करून असत्याचा त्याग करतो तोच श्रेष्ठ असतो.