वांछित मन्त्र चुनें

अग्ने॒ तम॒द्याश्व॒न्न स्तोमैः॒ क्रतु॒न्न भ॒द्रꣳ हृ॑दि॒स्पृश॑म्। ऋ॒ध्यामा॑ त॒ऽओहैः॑ ॥७७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। तम्। अ॒द्य। अश्व॑म्। न। स्तोमैः॑। क्रतु॑म्। न। भ॒द्रम्। हृ॒दि॒ऽस्पृश॑म्। ऋ॒ध्याम॑। ते॒। ओहैः॑ ॥७७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:77


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) बिजुली के समान पराक्रमवाले विद्वन् ! जो (अश्वम्) घोड़े के (न) समान वा (क्रतुम्) बुद्धि के (न) समान (भद्रम्) कल्याण और (हृदिस्पृशम्) हृदय में स्पर्श करनेवाला है, (तम्) उस पूर्व मन्त्र में कहे तुझ को (स्तोमैः) स्तुतियों से (अद्य) आज प्राप्त होकर (ते) आप के (ओहैः) पालन आदि गुणों से (ऋध्याम) वृद्धि को पावें ॥७७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे शरीर आदि में स्थिर हुए बिजुली आदि से वृद्धि, वेग और वृद्धि के सुख बढ़ें, वैसे विद्वानों की सिखावट और पालन आदि से मनुष्य आदि सब वृद्धि को पाते हैं ॥७७ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अग्ने) विद्वन् (तम्) पूर्वमन्त्रोक्तम् (अद्य) (अश्वम्) तुरङ्गम् (न) इव स्तोमैः स्तुतिभिः (क्रतुम्) प्रज्ञानम् (न) इव (भद्रम्) भजनीयं कल्याणकरम् (हृदिस्पृशम्) यो हृदये स्पृशति तम् (ऋध्याम) वर्धेम। अत्र अन्येषामपि० [अष्टा०६.३.१३७] इति दीर्घः (ते) तव (ओहैः) रक्षणादिभिः ॥७७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! विद्युत्सदृशपराक्रमिन्नश्वं न क्रतुं न भद्रं हृदिस्पृशं तं त्वां स्तोमैरद्य प्राप्य ते तवौहैर्वयं सततमृध्याम ॥७७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा शरीरस्थेन विद्युदादिना वृद्धिवेगौ प्रज्ञासुखानि च वर्धेरँस्तथा विद्वच्छिक्षारक्षादिभिर्मनुष्यादयो वर्द्धन्ते ॥७७ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे शरीरातील विद्युतमुळे बुद्धीचा वेग व बुद्धीचे सुख वाढते तसे विद्वानांची शिकवणूक व पालन इत्यादींनी माणसांची उन्नती होते.