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उ॒क्षा स॑मु॒द्रोऽअ॑रु॒णः सु॑प॒र्णः पूर्व॑स्य॒ योनिं॑ पि॒तुरावि॑वेश। मध्ये॑ दि॒वो निहि॑तः॒ पृश्नि॒रश्मा॒ वि च॑क्रमे॒ रज॑सस्पा॒त्यन्तौ॑ ॥६० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒क्षा। स॒मु॒द्रः। अ॒रु॒णः। सु॒प॒र्ण इति॑ सुऽप॒र्णः। पूर्व॑स्य। योनि॑म्। पि॒तुः। आ। वि॒वे॒श॒। मध्ये॑। दि॒वः। निहि॑त॒ इति॒ निऽहि॑तः। पृश्निः॑। अश्मा॑। वि। च॒क्र॒मे॒। रज॑सः। पा॒ति॒। अन्तौ॑ ॥६० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:60


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो परमेश्वर ने (दिवः) प्रकाश के (मध्ये) बीच में (निहितः) स्थापित किया हुआ (उक्षा) वृष्टि-जल से सींचनेवाला (समुद्रः) जिससे कि अच्छे प्रकार जल गिरते हैं, (अरुणः) जो लाल रङ्गवाला तथा (सुपर्णः) जिससे कि अच्छी पालना होती है, (पृश्निः) वह विचित्र रङ्गवाला सूर्यरूप तेज और (अश्मा) मेघ (रजसः) लोकों को (अन्तौ) बन्धन के निमित्त (वि, चक्रमे) अनेक प्रकार घूमता तथा (पाति) रक्षा करता है तथा (पूर्वस्य) जो पूर्ण (पितुः) इस सूर्य्यमण्डल के तेज को उत्पन्न करनेवाला बिजुलीरूप अग्नि है, उसके (योनिम्) कारण में (आ, विवेश) प्रवेश करता है, वह सूर्य्य और मेघ अच्छे प्रकार उपयोग करने योग्य हैं ॥६० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को ईश्वर के अनेक धन्यवाद कहने चाहियें, क्योंकि जिस ईश्वर ने अपने जानने के लिये जगत् की रक्षा का कारणरूप सूर्य्य आदि दृष्टान्त दिखाया है, वह कैसे न सर्वशक्तिमान् हो ॥६० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(उक्षा) वृष्ट्या सेचकः (समुद्रः) सम्यग् द्रवन्त्यापो यस्मात् सः (अरुणः) आरक्तः (सुपर्णः) शोभनानि पर्णानि पालनानि यस्मात् (पूर्वस्य) पूर्णस्य (योनिम्) कारणम् (पितुः) उत्पादिकाया विद्युतः (आ) (विवेश) प्रविशति (मध्ये) (दिवः) प्रकाशमयस्य (निहितः) ईश्वरेण स्थापितः (पृश्निः) विचित्रवर्णः सूर्य्यः (अश्मा) अश्नुते व्याप्नोति स मेघः। अश्मेति मेघनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१०) (वि) (चक्रमे) विविधतया क्रमते (रजसः) लोकान् (पाति) रक्षति (अन्तौ) बन्धने ॥६० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! य ईश्वरेण दिवो मध्ये निहित उक्षा समुद्रोऽरुणः सुपर्णः पृश्निरश्मा मेघश्च रजसोऽन्तौ विचक्रमे पाति च पूर्वस्य पितुर्योनिमाविवेश, स सम्यगुपयोक्तव्यः ॥६० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरीश्वरस्यानेके धन्यवादा वाच्याः, कुतो येन स्वविज्ञापनाय जगत्पालननिमित्तः सूर्यादिदृष्टान्तः प्रदर्शितः, स कथं न सर्वशक्तिमान् भवेत् ॥६० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी ईश्वराबद्दल कृतज्ञता बाळगली पाहिजे. कारण ज्या ईश्वराने माणसांना जाणावे यासाठी जगाचा रक्षक असा कारणरूपी सूर्य निर्माण करून जणू दृष्टांतच दिलेला आहे, तर मग असा परमेश्वर सर्वशक्तिमान कसा नसेल?